150/2024, बाल कहानी- 24 अगस्त


बाल कहानी- मनमानी
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चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। नीलेश अपने मित्रों के साथ जंगल की ओर बढता जा रहा था। जंगल में घुसते ही वह कुछ डरा तो उसके मित्र रामेश्वर ने कहा-, "नीलेश! क्या हुआ? डर मत..हम लोग तो हैं।"
नीलेश बोला-, "वह तो ठीक है, लेकिन मैं घर पर बताकर नहीं आया। मैंने कहा था कि माँ को बता दें, लेकिन तुम लोगों ने बताने ही नहीं दिया।"
"अरे, घबराओ नहीं..हम लोग जंगल घूमकर थोड़ी देर में घर पहुँच जायेंगे।" रामेश्वर ने कहा।
सभी लोग धीरे-धीरे जंगल में बढ़ते और चारों ओर देखते जा रहे थे। घने पेड़ और कंटीली झाड़ियों के बीच निकलना बहुत ही कठिन था। जमीन पर बड़े-बड़े कंकड़-पत्थर पड़े हुए थे। अगर सही से पैर नहीं रखा तो मोच आये बिना नहीं रहेगी। तभी एकाएक नीलेश का पैर एक गोल पत्थर पर पड़ते ही फिसल गया और वह कराह उठा। उसके कराहने की आवाज सुनकर सभी साथी डर गये और बोले-, "क्या हुआ?" सभी मुड़कर नीलेश की ओर देखने लगे। रामेश्वर बोला-, "अरे, नीलेश! तुम तो पैर पकड़कर बैठ गये। हम लोग कैसे जंगल घूमेंगे?"
"तुम लोग जाओ, मैं नहीं जा सकूँगा। लगता है, मेरे पैर में फिसलने से मोच आ गयी है। अब मुझसे नहीं चला जाता। मेरे पैर में बहुत दर्द हो रहा है।"
"तुम्हें छोड़कर हम कैसे चले जायें! नहीं..अब हम वापस घर जायेंगे। जंगल फिर कभी घूमेंगे।" रामेश्वर की बात सुनकर सभी ने हामी भरी और नीलेश को कुछ मित्र सहारा देते हुए वापस घर की ओर मुड़ गये।
माँ ने जैसे ही नीलेश को देखा तो वह घबरा गयी और बोली-, "मेरे बेटे को क्या हुआ, तुम लोग इसे कहाँ लिवा गये थे और वह भी मुझसे बिना पूछे?" रामेश्वर बोला-, "माँ! मुझसे गलती हो गयी। नीलेश तो आपसे पूछने आ रहा था कि मैं मित्रों के साथ जंगल घूम आऊँ, लेकिन मैंने उसे नहीं आने दिया।"
"तुम लोग बिना पूछे जंगल में घूमने गये थे? पता है, वहाँ बहुत से जंगली जानवर हैं। शुक्र करो कि नीलेश को मोच आ गयी और तुम लोग जंगल में अधिक अन्दर नहीं जा पाये अन्यथा कोई भी वापस नहीं लौटता। पता है, उस जंगल में कोई बिना हथियारों के नहीं जाता है और इसके लिए पहले पुलिस और वन विभाग की अनुमति लेनी पड़ती है।" नीलेश की माँ की बातें सुनकर सभी चुप थे। सभी ने हाथ जोड़कर, कान पकड़कर माफी माँगी और कभी भी जंगल में न जाने का निश्चय किया और नीलेश की माँ को वचन दिया कि-, "आज के बाद कोई भी उस जंगल में नहीं जायेगा। हम लोग यहीं गाँव में खेल के मैंदान में खेलेंगे।" नीलेश को गाँव में वैद्य के पास दिखाया गया। कुछ ही दिनों में देशी दवाई और महुए की सिकाई से मोच बिल्कुल ठीक हो गयी और एक माह में नीलेश पहले की तरह चलने लगा।

संस्कार सन्देश-
हमें कभी भी कोई काम बड़ों से पूछे बिना नहीं करना चाहिए।

लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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