143/2024, बाल कहानी-14 अगस्त
बाल कहानी- होशियारी और दोस्ती
----------------------------
एक पेड़ पर एक कबूतर और कबूतरी का जोड़ा रहता था। दोनों बहुत ही खुशी-खुशी खुशहाल जीवन जी रहे थे। कुछ समय बाद कबूतरी ने कुछ अण्डों को जन्म दिया और कुछ महीनों बाद जल्दी वह अण्डे कबूतर का रूप धारण करके छोटे-छोटे कबूतर के रूप में हो गये। दोनों कबूतर और कबूतरी अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे। इतना प्यार करते थे कि एक दिन जब कोई एक भोजन की तलाश पर बाहर जाता तो दूसरा अपने बच्चों का ध्यान रखता।
एक दिन की बात है कि कबूतरी अपने बच्चों को छोड़कर कहीं दूर विचरण करते-करते आकाश में दूर कहीं निकल गयी। शाम हो गयी और वह अपने घोंसले पर नहीं लौटी तो कबूतर को बहुत चिन्ता हुई कि कबूतरी अभी तक क्यों नहीं लौटी। सोचता रहा-, "क्या करें? बच्चों को छोड़कर जाते हैं तो डर है क्योंकि बाहर चील-कौवे घूमा करते हैं जो उनको पकड़ सकते हैं। यहाँ तक कि नीचे एक बिल्ली भी रहती थी, जो हमेशा इस फिराक में रहती थी कि कब मौका पड़े तो उनके बच्चों को वह दबोच ले।"
अब बहुत ही सोच समझने के बाद कबूतर ने सोचते-सोचते यही निर्णय लिया कि वह जाकर के कबूतरी को देख कर के आयेगा। यह सोचकर वह बहुत दूर तक कबूतरी की तलाश में उड़ता गया, पर उसे कबूतरी नहीं मिली। फिर अचानक दूर से देखा कि नीचे एक जाल बिछा हुआ था और कबूतरी उसी में फँसी हुई थी। कबूतर नीचे उतर कर देखने गया। देखा कि कबूतरी उसमें फँसी है। अब उसको समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? उसने धीरे से और अपने दोस्त कबूतरों को बुलाया और उनके साथ जा करके उसे कबूतर की जाल को धीरे-धीरे सब ने मिलकर के हटाने का प्रयास किया और थोड़ी सी मेहनत से जैसे ही जाल हटा, कबूतरी जाल से बाहर निकल आयी। दोनों उड़ करके खुशी-खुशी अपने बच्चों के पास वापस आ गये लेकिन इधर बच्चों को अकेले घर में आकर बिल्ली पेड पर चढ़ गयी। उसने देखा कि बच्चे अकेले हैं और उनको पकड़ लें, लेकिन बच्चे भी छोटे थे, पर होशियार बहुत थे। उन्होंने घोंसले के नीचे जाकर एकदम अन्दर की तरफ जाकर घुस गये ताकि बिल्ली को लगे कि वहाँ घोंसले में कोई भी नहीं है। बिल्ली ने बहुत देर तक देखा। बहुत आवाज भी दी, लेकिन उनको कबूतर बच्चों की आवाज नहीं आई तो वह निराश होकर को नीचे उतर गयी। वह बच्चे को नहीं पकड़ पायी। तभी अचानक दोनों कबूतर माता-पिता अपने घोंसले पर आ गये। उन्होंने अपने बच्चों को सही सलामत पाया, यह देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और वे खुशी-खुशी साथ-साथ रहने लगे। धीरे-धीरे जल्दी वह कबूतर के बच्चे बड़े होकर कबूतर में परिवर्तित हो गये।
संस्कार सन्देश-
हमें अपने परिवार की खुशियों और उसकी सुरक्षा हेतु सदा तत्पर रहना चाहिए।
लेखिका-
अंजनी अग्रवाल (स०अ०)
उच्च प्रा० वि० सेमरुआ सरसौल (कानपुर नगर)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
Comments
Post a Comment