कन्हैया कर दे बेड़ा पार

जोड़ सकूँ  तेरी बंशी से 

इन साँसों के तार,

नित्य निहारूँ इन नयनों से 

 यह अनुपम श्रंगार।


कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे तू ले जा भव से पार।।


सुबह उठूँ तेरा नाम पुकारूँ

सांझ ढले तेरी  वाट निहारूँ,

रोम- रोम मेरा श्याम- श्याम 

की करता रहे पुकार,


कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे अब ले जा भव से पार।


हृदय बने मेरा वृंदावन 

मिट जाए तन- मन की उलझन,

जीवन कुंज किलोल करे

स्वर शब्द भरे झनकार,


कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे तू ले जा भाव से पार।


कृष्ण नाम की ओढ़ चुनरिया 

भरूँ प्रेम रस से गगरिया, 

गोकुल की गलियों में घूमूँ 

दे  मुझको अधिकार,


नाचूँ ज्यों गोपाल नचावे 

तेरे सिवा कोई और ना भावे,

तोड़ूँ जग के नाहक  बंधन 

विनती यह बारंबार,


कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे अब ले जा भव से पार।


कृष्ण लिखूँ और कृष्ण ही बोलूँ

उठा तराजू मन को तोलूँ,

 'यशो' लेखनी सृजित करे

श्री कृष्ण रूप साकार,


कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे अब ले जा अब से पार।


जोड़ सकूँ तेरी बंशी से 

इन सांसों के तार।

कन्हैया कर दे बेड़ा पार 

मुझे अब ले जा भव से पार।।


रचयिता

यशोधरा यादव 'यशो'

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय सुरहरा,

विकास खण्ड-एत्मादपुर,

जनपद-आगरा।



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