145/2024, बाल कहानी-17 अगस्त
बाल कहानी- बैग
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"माँ! मुझे नया बैग आज दिला दीजिए। कितने दिनों से मैं आपसे कह रहा हूँ.. अगर आज आपने नया बैग नहीं दिलाया तो कल से आप मुझे स्कूल जाने के लिए नहीं कहियेगा।" इतना कह कर सोनू जोर-जोर से रोने लगा।
माँ दौड़कर सोनू के पास आयी और बोली-, "बेटा! क्या बात है, तुम इतने क्यों परेशान हो? तुम्हारे पिताजी काम की तलाश में शहर गये हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। जैसे-तैसे घर का खर्च ही बड़ी मुश्किल से चल रहा है। तुम कुछ दिन और धैर्य रख लो। जैसे ही तुम्हारे पिता जी शहर से आ जायेंगे, मैं सबसे पहले तुम्हें बैग दिला दूँगी। तू इस तरह जिद न कर, मुझे दुःख होता है।"
"नहीं माँ! मुझे आज ही चाहिए नया बैग। मेरे सब दोस्तों के पास नया बैग है इसलिए सब मेरी हँसी उड़ाते हैं।"
"बेटा! अगर वे सच में तेरे दोस्त हैं तो कभी तेरी हँसी नहीं उड़ायेंगे।
रही बात नए बैग की, फिलहाल मैं इस बैग को धुलकर साफ कर देती हूँ।"
"माँ! ये देखिए, बैग कई जगह से फटा हुआ है।"
"कोई बात नहीं.. मैं धुलकर अच्छी तरह सीं दूँगी और हाँ! तू मेरा समझदार बेटा है। इस तरह रोया न कर!"
"तुझे याद है, कल जब मैंने कहानी सुनाई थी। उस कहानी से क्या शिक्षा मिली थी?"
"हाँ, माँ! याद है.. खुशी में ज्यादा आनन्दित न हो और गम में ज्यादा दुःखी न हो।"
"फिर आज तुम जरा से गम में कैसे दुःखी हो गये? चलो, अब हाथ-मुँह धुलकर खाना खा लो।"
"ठीक है, माँ! आप खाना लगाओ, मैं मुँह-हाथ धुलकर अभी आता हूँ, पर आप मुझे पिता जी के आने के बाद बैग जरूर दिलाना?"
"मैं स्वयं तुझे तेरी पसन्द का बैग दिलाने बाजार तेरे साथ चलूँगी और चाकलेट भी दिलाऊँगी।"
सोनू माँ की बात सुनकर बहुत खुश हुआ। वह माँ से सॉरी बोलता हुआ गले से लग गया और बोला-, "माँ! अब मैं कभी जिद नहीं करुँगा।" माँ की सोनू की समझदारी से बहुत खुश थी।
संस्कार संदेश-
विपरीत परिस्थितियों में हमें कभी जिद नहीं करना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए।
लेखिका-
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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