151/2024, बाल कहानी- 27 अगस्त


बाल कहानी- पेड़ों का महत्व
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पेरू नामक स्थान में एक संयुक्त परिवार रहता था, जिसमें एक बड़ा भाई मोहन और उसका छोटा भाई सोहन अपने परिवार के साथ रहते थे। बड़े भाई मोहन के दो बच्चे मनु और तनु थे। मनु बहुत ही समझदार और होनहार बच्चा था। दूसरी तरफ तनु थोड़ा नटखट और शरारती बच्चा था लेकिन समझदार बहुत था। 
एक दिन जब वृक्षारोपण का वृहद कार्यक्रम चल रहा था, तो तनु और मनु दोनों को अपने मम्मी-पापा के साथ पूरे ग्राउन्ड में तीस-तीस पेड़ लगाने थे, जिसमें मनु ने तो अपने तीस पेड़ लगाये लेकिन तनु ने सारे पेड़ों को एक किनारे कोने में डाल दिया और एक भी पेड़ नहीं लगाया। दूसरी तरफ जो मनु ने पेड़ लगाये थे, उन पेड़ों को भी चुपचाप जाकर उखाड़ करके फेंक दिया। 
कुछ समय पश्चात जब मोहन ग्राउन्ड में पेड़ देखने गया कि पेड़ ठीक से लगे या नहीं लगे तो देखता हैं कि एक भी पेड़ नहीं लगा हुआ था। अब उन्होंने घर में आकर तनु और मनु दोनों को बुलाया और पूछा, "बेटा! पेड़ नहीं लगाये थे क्या?" मनु ने जवाब दिया, "पापा! मैंने तो सारे पेड़ बहुत अच्छे से जमीन के अन्दर मिट्टी खोदकर लगाए थे और उनमें पानी भी डाला था।" तब तनु कुछ भी नहीं बोला और चुपचाप वहाँ से चला गया। अचानक किसी का फोन आ गया और उनके पिताजी को अचानक जाना पड़ा और पेड़ की बात ऐसे ही रह गयी। 
कुछ समय बाद अचानक उनके पिताजी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गयी। यहाँ तक कि उन्हें ऑक्सीजन की कमी हो गयी और ऑक्सीजन का सिलेण्डर लगाना पड़ा। अब डॉक्टर आये और बोले, "आप लोग तो इतने पेड़ लगाते हैं और इतने अच्छे वातावरण में रहते हैं फिर भी आप लोगों को ऑक्सीजन की समस्या कैसे हो गयी? पेड़ तो हमारी हर तरह से रक्षा करते हैं, चाहे वह हमें शुद्ध हवा दें, चाहें पेड़ से हमें फल-सब्जी मिले। विभिन्न प्रकार के पत्ते, यहाँ तक की उनकी छाल सभी हमारे बहुत ही काम आते हैं।" तनु यह सब बातें सुन रहा था। तब उसको समझ में आया कि उसने कितना गलत काम किया। अपने तो पेड़ लगाये ही नहीं और जो भैया ने पेड़ लगाये थे, मैंने उनको भी उखाड़कर फेंक दिया। अब पापा की इतनी तबीयत खराब देखकर वह अपने-आपको काफी कोसने लगा, फिर जाकर उसने पापा से क्षमा माँगी और कहा, "मैंने यह गलती की थी, मुझे इसके लिए क्षमा कर दे और तुरन्त जाकर उसने सौ पेड़ पूरे ग्राउन्ड में लगाये और उनमें से कुछ पेड़ अपने मित्र को देकर भी जगह-जगह लगवाये। जल्द ही कुछ वर्ष पश्चात दोनों बच्चे भी बड़े हो गए और वह पेड़ भी खूब हरे-भरे और फलदार होकर लहराने लगे और उन्हीं पेड़ों की बदौलत उस गाँव में फिर कभी किसी को ऑक्सीजन के मास्क की जरूरत नहीं पड़ी और ना ही किसी को कभी साँस की समस्या हुई।

संस्कार सन्देश-
हमें द्वार-द्वार पर, हर जगह खेत-खलिहानों और जहाँ भी खाली और उपयुक्त जगह दिखाई दे, वहाँ पेड़ लगाने चाहिए।

लेखिका 
अंजनी अग्रवाल (स०अ०) 
उच्च प्राथमिक विद्यालय सेमरुआ
सरसौल (कानपुर नगर)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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