अब शस्त्र उठाओ तुम सीता

बस्ती में जितनी सीता हैं, रावण उतने गलियारे में।

कोई झाँक रहा खिड़की मुंडेर, कोई चौक गली चौबारे में।

अब शस्त्र उठाओ तुम सीता, मत बैठो राम भरोसे तुम।

पापी को घेरो मारो तुम, निकलो निडर हो घरों से तुम।

लक्ष्मन रेखा को मत लाँघो, कब कौन यहाँ पर छल जाए?

मायावी यह नगरी ठहरी, कब किसका जादू चल जाए?

तुम सीता दुर्गा काली हो, मर्यादा का दामन पकड़ो।

फँस करके मोह जाल में तुम, झूठे बंधन‌ में मत जकड़ो।

कोई न कोई राम तुम्हें, निश्चय ही वर ले आएगा।

थामेगा हाथ तुम्हारा वो, हृदय अपना दे जाएगा।

सुख संग बाँटना दु:ख भी तुम, महलों से वन तक जाना संग।

खुद त्याग तुम्हें सिखला देगा, जीवन‌ का नया पुराना ढंग।


चयिता

राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा, 
जनपद-बरेली।

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