183/2024, बाल कहानी- 08 अक्टूबर


बाल कहानी - पुरस्कार
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मोनू की दादी की अचानक तबीयत खराब हो जाती है। मोनू अपनी दादी को बहुत प्यार करता हैं। उनकी तबियत खराब हो जाने के कारण वह बहुत उदास रहने लगता है। उसके दादा जी उसकी दादी का बहुत इलाज करवाते हैं लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था और दादी का स्वर्गवास हो जाता है। 
मोनू के दादा जी मोनू को बहुत समझाते हैं लेकिन मोनू का अब पढ़ाई में भी मन नहीं लगता है। वह सदैव उदास-उदास सा रहता है। 
मोनू के मम्मी-पापा पहले ही नहीं थे। बस चाचा-चाची, दादा जी और दादी ही थे। अब तो दादी भी नही रहीं। मोनू के चाची-चाचा उसे प्यार नहीं करते थे। यहाँ तक कि उसके दादा जी को भी पसन्द नहीं करते थे। सदैव उनका तिरस्कार किया करते थे। तभी मोनू के दादा जी ने मोनू का दाखिला नवोदय विद्यालय में करवा दिया। समय बीता और पढ़ाई पूरी करने के बाद जल्द ही मोनू बहुत बड़ा अधिकारी बन गया।मोनू के दादा जी को बुलाकर सम्मानित किया गया। अब उनके पास धन और शोहरत की कमी न रही। अचानक एक दिन चाचा-चाची आये और बोले, "बेटा! कल तो तुम्हारा जन्मदिन है! क्या पुरस्कार लोगे?" मोनू बोला,"चाचा, चाची जी मुझे किसी पुरस्कार की आवश्यकता नहीं है। मेरे पास दादीजी और दादा जी के आशीर्वाद से सब कुछ है।" चाचा जी बोले, "बेटा! फिर भी हम अपनी खुशी से तुम्हें कुछ देना चाहते हैं।" मोनू से सिर झुकाकर उत्तर दिया, "अगर आप मुझे सच में कुछ देना चाहते हैं तो मुझे बहुत प्यार दें और मेरे दादा जी की सदैव इज्जत और आदर सत्कार करें, यही मेरा पुरस्कार हैं।" चाचा-चाची समझ गये और अपनी गलती के लिए उन लोगों से माफी भी माँगी।

संस्कार सन्देश -
हमें सदैव अपने से बड़ों की इज्जत और आदर करना चाहिए।

लेखिका
अंजनी अग्रवाल (स०अ०)
उच्च प्राथमिक विद्यालय सेमरुआ, सरसौल (कानपुर नगर)

कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद 
दैनिक नैतिक प्रभात

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