179/2024, बाल कहानी- 03 अक्टूबर
बाल कहानी - पुरस्कार
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"माँ! ये देखिए- मैंने कागज से घर बनाया है। कल क्राफ्ट वर्क है। मैं जाकर मैंम को दिखाऊँगा, फिर मुझे पुरस्कार मिलेगा। मेरी मैंम ने बताया था कि सब लोग घर से बनाकर लाना। जिसका सबसे अच्छा होगा, उसे पुरस्कार मिलेगा। माँ! आप बतायें, ये घर अच्छा बना है कि नहीं?"
"बहुत अच्छा बना है सोनू बेटा! ये तुम्हारा घर.. अब मुँह-हाथ धोकर खाना खा लो। जबसे स्कूल से तुम आये हो, तब से इसे ही बना रहे हो। रात हो गयी है, अब खाना खाकर सो जाओ।"
"ठीक है माँ! आप खाना लगा दीजिए.. मैं मुँह-हाथ धोकर आता हूँ, पर माँ! ये तो बतायें कि इसे मैं कहाँ रख दूँ? जिससे ये घर सुरक्षित रहे क्योंकि कल सुबह ही इस घर को स्कूल ले जाना है।"
"तुम फिक्र न करो बेटा! मैं इसे अलमारी में रख देती हूँ। जब तुम स्कूल जाने लगोगे, तब मैं अलमारी से निकाल कर दे दूँगी।"
सोनू जल्दी से मुँह-हाथ धोकर खाना खाने बैठ जाता है। खाना खाने के बाद सोनू सो जाता है।
सुबह उठते ही तैयार होकर अपने हाथ से बनाये हुए घर को लेकर स्कूल की ओर खुशी-खुशी चल पड़ता है। रास्ते में उसे उसका दोस्त मोनू मिल जाता है वह सोनू से कहता है, "दोस्त! तुम थक गये होगे। लाओ! मैं इस खूबसूरत घर को अपने हाथ में ले लेता हूँ। मैंने भी बनाया है, पर वो मेरे बैग में है। तुम्हे स्कूल पहुँचकर दिखाऊँगा।"
दोनों बातें करते-करते स्कूल के अन्दर दाखिल हो जाते हैं। मोनू के हाथ में सोनू का घर है। सभी लोग घर देखकर मोनू की तारीफ करने लगते हैं। मोनू सबको 'धन्यवाद' बोलने लगता है। इससे पहले कि सोनू सच्चाई बताने का प्रयास करता, मोनू जल्दी से मैंम के हाथ में घर देकर अपना नाम बता देता है और कहता है, "मैंने बहुत मेहनत से इसे बनाया है।"
सोनू ये सब देखकर बहुत दुःखी होता है और रोने लगता है, पर कुछ बोल नहीं पाता है।
कक्षा में सोनू को डाँट भी पड़ती है कि एक तो तुम बनाकर नहीं लाये, ऊपर से रो रहे हो, फिर भी सोनू कुछ कह नहीं पाता है। कुछ देर बाद मोनू को पुरस्कार मिल जाता है। वह खुशी में झूम उठता है।
इसके बाद खेल के पीरियड में सोनू चुपचाप एक किनारे बैठ जाता है। मोनू उसी के सामने कुछ मित्रों के साथ हँस-हँस कर फुटबाल खेलने लगता है। मोनू फुटबॉल खेलते समय अचानक गिर जाता है। उसके पैर से खून निकलने लगता है। मोनू के गिरते ही सभी मित्र हँसने लगते है, तभी सोनू दौड़कर मोनू को उठाता है। उसके पैर से खून निकलता देखकर वह जोर से चिल्लाकर सभी टीचर्स को बुलाता है। टीचर्स आकर मोनू को प्राथमिक चिकित्सा से उपचार करते हैं।
सोनू का अपनापन देखकर मोनू पश्चाताप के आँसू रोने लगता है और सोनू को गले लगाकर माफ़ी माँगता है और खुद ही सभी टीचर्स को बता देता है कि जो पुरस्कार आज मैंने पाया, वह छल करके पाया है। सच्चाई जानकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं। सच्ची भावना से मोनू के माफी माँगने पर सभी मोनू को माफ कर देते हैं।
सोनू को पुरस्कार मिल जाता है, सोनू बहुत खुश हो जाता है। घर आकर माँ से अपनी खुशी बताता है। माँ गले लगाकर सोनू की खुशी दोगुना कर देती है।
संस्कार सन्देश-
सच्चाई में बहुत ताकत होती है वह किसी न किसी प्रकार से सामने आ ही जाती है।
कहानीकार-
शमा परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात
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