शक्ति का पर्व

न कोई सुन्दर पण्डाल लगाओ

न माता की कोई मूरत पधराओ


बैठी है जो बूढ़ी माँ घर में

जाकर उसके चरण दबाओ


छोड़कर आई जो सब कुछ अपना

उस पत्नी का साथ निभाओ


चहके जो बिटिया आँगन में

उस पर अपना प्यार लुटाओ


हो गई विदा बहना जो घर से

तीज त्योहार पर उसे बुलाओ


घर में होगी भाभी माँ समान

उसके तुम लक्ष्मण बन जाओ


साथ में पढ़ती है जो सहपाठी

सुरक्षा का उनमें भाव जागाओ


बस नौ नहीं कई रूप हैं माँ के

हर नारी में इसके दर्शन पाओ


हो सुरक्षित जब नारी इस जग में

तभी शक्ति का यह पर्व मनाओ॥


रचयिता

मनीषा सिंह,

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय सुरेहरा,

विकास खण्ड-एत्मादपुर,

जनपद-आगरा।

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