दीप जलाएँ
जो अंतर मन के तम को
हर ले,
आओ इक ऐसा दीप
जलाएँ।
जो कलुषित तन को साफ
कर दे,
ईर्ष्या - द्वेष जैसे बुरे
भाव हटाएँ।।
जो कर दे रोशन कोना
कोना,
इस अनमोल जीवन का।
दया- प्रेम जैसी भावना
की,
आओ इक ऐसी ज्योति
जगाएँ।।
जो निराशा को दूर
भगाकर,
आशा की किरणों को
चमका दे।
प्रसन्नता के वसन
पहन कर।
आओ इक ऐसी फुलझड़ी
जलाएँ।।
प्यार के रंगों से रंगोली
सजाकर,
खुशियों के बंदनवार बाँधें।
आओ आतिशबाजी के
संग अपने,
सभी गमों को धुएँ में
उड़ाएँ।।
जो अंतर मन के तम को
हर ले,
आओ इक ऐसा दीप
जलाएँ।।
रचयिता
अर्चना शर्मा,
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय सुरेहरा,
विकास खण्ड-एत्मादपुर,
जनपद-आगरा।
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