196/2024, बाल कहानी-26 अक्टूबर
बाल कहानी- बहादुर बनो
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नियाज कक्षा 6 का विद्यार्थी था। नियाज पढ़ने-लिखने में बहुत होशियार था। वैसे नियाज में बहुत सारी खूबियाँ थी। बस! एक ही कमी थी, नियाज जरा-जरा-सी बात पर परेशान हो जाता था और रोने लगता था।
एक दिन की बात है, नियाज के पास दस रुपए थे। वह घर के पास एक दुकान पर गया। उसने दस रुपए का एक बिस्किट का पैकेट लिया।
उसी वक्त नियाज का दोस्त सोनू भी एक पैकेट बिस्किट लेने आया।
नियाज ने दुकान पर दस रुपए रखकर बिस्किट उठाकर घर की तरफ जाने लगा और सोनू भी, तभी दुकानदार ने दोनों को रोका। सोनू झट से बोला, "चाचा! मैने दस का नोट दे दिया है।" इतना कहकर सोनू चला गया।
नियाज बोला, "मैंने दस रुपए दिये हैं आपको।" दुकानदार ने नियाज के हाथ से बिस्किट का पैकेट छीनते हुए कहा, "पैसे लाओ! तब ले जाओ तुमने कोई पैसा नहीं दिया है! मुझे सिर्फ एक दस का नोट मिला है, जो सोनू देकर गया है। ये सुनकर नियाज रोने लगा और घर वापस आ गया।
घर पर डाँट पड़ेगी, ये सोचकर नियाज ने किसी से कुछ नहीं कहा।
पर नियाज को तकलीफ थी कि वह सच को साबित नहीं कर पाया।
वह तकलीफ में था। तभी उसकी अम्मी को शक हुआ कि कोई बात जरूर है। उन्होंने कई बार पूछा तो नियाज ने सारी बात बता दी।
कुछ देर बाद इत्तेफाक से सोनू नियाज के घर नियाज़ को बुलाने आ गया कि, "आओ! चलें, आज इतवार का दिन है। पास में मेला लगा है। चलो! चलके टहल आते हैं। सब लोग आ-जा रहे हैं।"
नियाज ने साफ मना कर दिया, "मैं नहीं जाऊँगा।"
तभी नियाज की अम्मी बोल उठी, "क्यों नहीं जाओगे? चलो, मैं तुम दोनों को मेला दिखा लाती हूँ। पर पहले तुम दोनों नाश्ता कर लो। ये देखो- मैंने मेज पर नाश्ता लगा दिया है।" इतना लजीज नाश्ता देख सोनू इनकार न कर सका।
सब ने भरपेट नाश्ता खाया और मेले की तरफ चल दिए। नियाज की अम्मी ने नियाज और सोनू को बराबर से खिलाया-पिलाया। खिलौना दिलाया। जब वापस होने लगे तो मोहल्ले की उसी दुकान पर दोनों के लिए दस रुपये वाले दो पैकेट बिस्किट बीस रुपए का लिया और दोनों बच्चों को एक-एक बिस्किट पकड़ा दिया। तभी दुकानदार बोला, "बहनजी! बुरा नहीं मानना, ये आपका बेटा चोर है। बिना पैसे दिए आज सुबह ही बिस्किट लेके भागा जा रहा था। इससे पहले कोई कुछ जवाब देता, नियाज रोने लगा। सोनू से रहा नहीं गया, वह बोल उठा, "चोर नियाज नहीं, मैं हूँ। मैंने आपको पैसा नहीं दिया था। ये लीजिए.. यही बिस्किट था। आप रख लीजिये।" फिर सोनू ने नियाज से कहा, "तुम मुझे माफ कर दो, पर दोस्त! तुम बहादुर बनो। अपने सच को साबित करना सीखो। रोना कायरों का काम है।" सोनू ने नियाज की अम्मी और दुकानदार से भी माफी माँगी।
सभी ने सोनू को माफ कर गले से लगा लिया। नियाज ने सबसे और खुद से वादा किया कि, "अब वह छोटी-छोटी बात पर रोयेगा नहीं, बल्कि हर मुश्किल को सोच-समझ कर हल करेगा।
#संस्कार_सन्देश -
हमें हर हाल में मुश्किल का सामना समझदारी से करना चाहिए। छोटी-छोटी बातों पर रोना नहीं चाहिए।
कहानीकार-
#शमा_परवीन
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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