191/2024, बाल कहानी- 21 अक्टूबर


बाल कहानी - उल्लू 
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"पिता जी! ये पेड़ पर कौन बैठा है? "उल्लू है।" पिताजी ने बताया।
"जाइए, पिता जी! मैं आपसे बात नहीं करूँगा। आप भी मेरे मित्रों की तरह मुझे उल्लू कह रहे हैं। मैं माँ के पास जा रहा हूँ।" पिता जी ने हँसते हुए रोहन को गोद में उठाकर कहा, "मेरे लाडले पुत्र! मैं तुम्हें उल्लू नहीं कह रहा हूँ। तुम तो बहुत प्यारे और होनहार हो।"
रोहन इससे पहले कुछ कहता, माँ छत पर आ गयी और बोली, "आप दोनों यहाँ हो, मैं कब से आवाज लगा रही हूँ आप दोनों को। खाना परोस दिया है, आकर खा लो। रात बहुत हो गयी है। सुबह रोहन को स्कूल भी जाना है।"
पिता जी बोले, "मैं आ ही रहा था रोहन को लेके, पर रोहन हमसे नाराज हो गया है।"
"क्या हुआ रोहन बेटा! तुम पिता जी से क्यों नाराज हो गये हो, क्या बात है? मुझे बताओ।" माँ ने पूछा।
माँ! वह देखो, उस डाल पर क्या बैठा है?" रोहन ने वही प्रश्न पूछा।
माँ ने गौर से देखा और कहा, "उल्लू है।" 
"माँ! आप भी मुझे उल्लू कह रही हैं?" रोहन फिर बोला।
"नहीं बेटा! मैं तुम्हें नहीं, उल्लू को उल्लू कह रही हूँ।" माँ का वही जबाब सुनकर रोहन गुस्सा होकर ये कहकर छत से नीचे आ गया कि, "आप दोनों एक ही तरह हो। मैं आप दोनों से बात नहीं करूँगा।" रोहन अपने कमरे में जाकर लेट गया। माँ और पिता जी ने बहुत समझाया, पर रोहन ने खाना नहीं खाया।
सुबह होते ही रोहन समय से उठा। तैयार होकर स्कूल जाने के बैग उठाया। माँ ने नाश्ता लगाया, टिफिन रखा, पर रोहन ने नहीं खाया। रोहन के माता-पिता रोहन के गुस्से के आगे बेबस हो गये। वे बहुत दु:खी हुए।
रोहन स्कूल पहुँच गया। क्लास में टीचर रोचक जानकारी और गतिविधि करा रही थी। बच्चों को खड़ा करके प्रश्न भी पूछ रही थी। 
कुछ देर बाद टीचर ने सभी बच्चों के हाथ में एक चित्र दिया और कहा, "जिसके हाथ में जो चित्र आयेगा बच्चों! आपको उस चित्र का नाम और उससे सम्बन्धित जानकारी साझा करनी होगी। जिस बच्चे का जवाब सही होगा, उसको पुरस्कार मिलेगा।"
सभी बच्चे एक-एक करके उत्तर देने लगे। जब रोहन ने चित्र देखा तो खामोश हो गया और रोने लगा। तभी टीचर ने रोहन के हाथ से चित्र ले लिया और बोली, "ये तो उल्लू है। इसमें रोने वाली क्या बात है?" रोहन फिर भी न चुप हुआ तो टीचर ने रोने की वजह पूछी! रोहन बोला, "मैंमजी! ये बताएँ, सब लोग मुझे उल्लू क्यूँ कह रहे है?" टीचर ने प्यार से समझाया कि, "इस चित्र में जो बना है, ये उल्लू है, न कि तुम। जैसे तुम्हारा नाम रोहन है, वैसे इसका नाम उल्लू है।"
रोहन को बात समझ आ गयी और अपने किए पर बहुत शर्मिन्दगी महसूस हुई। छुट्टी होते ही वह घर पहुँचा। घर पहुँचते ही माँ के गले लग गया और अपने गुस्से के लिए माफी माँगी। माँ ने रोहन को समझाते हुए माफ कर दिया। थोड़ी देर में पिता जी भी आ गये। सबने मिलकर खुशी-खुशी खाना खाया। रोहन ने पिताजी से भी माफ़ी माँगी और वादा किया कि, "अब कभी गुस्सा नहीं होऊँगा। मैं अच्छा इन्सान बनूँगा।

#संस्कार_सन्देश - 
स्थिति कुछ भी हो, हमें सदैव धैर्य रखना चाहिए। गुस्सा नहीं करना चाहिए।

कहानीकार-
#शमा_परवीन 
बहराइच (उत्तर प्रदेश)

कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन 
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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