माँ मुझको चरखा दिला दे

माँ मुझको चरखा दिला दे

मैं भी सूत कपास कातूँगा

फिर गांधी बन जाऊँगा मैं

माँ मुझे खादी चादर लादे

उसे ओढ़ सत्य राह चलूँगा मैं

फिर मैं भी गांधी बन जाऊँगा

सत्य पुजारी कहलाऊँगा मैं

माँ मुझको भी गीता ला दे

पढ़ कर्मयोगी बन जाऊँगा मैं।।

माँ मुझको खादी चादर ला दे

अहिंसा की राह दिखाऊँगा मैं

माँ मुझको संगीत सिखा दे

रघुपति राघव राजाराम गाऊँगा

फिर मैं भी गांधी बन जाऊँगा।।

माँ मुझको ऐसी कलम दिला दे

अन्याय  के खिलाफ लड़ूँगा मैं

माँ मुझको ऐसी लाठी ला दे

इसे पकड़-पकड़ कर  मैं

सत्य अहिंसा ओर प्रेम के

राह चल  दीप जलाऊँगा

मैं भी गांधी बन जाऊँगा।।


रचयिता

माधुरी पौराणिक,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय हस्तिनापुर,
विकास खण्ड-बड़ागाँव,
जनपद-झाँसी।



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