188/2024, बाल कहानी-16 अक्टूबर


बाल कहानी - भूल का परिणाम
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एक बार मोहन अपने मित्रों के साथ पास के ही एक बाँध पर पिकनिक मनाने गया। वहाँ पर मेला लगा हुआ था। मोहन ने अपने मित्रों के साथ मेला देखा और मेले में जलेबियाँ खायी। फिर उन सबने चाट का आनन्द लिया। इसके बाद मोहन और उसके मित्र बाँध पर घूमने गये। वहाँ मोहन अपने मित्रों के साथ एक बड़ी चट्टान पर बैठ गया। मोहन ने अपने मित्रों से कहा कि, "हम सबने आज खूब मेला घूमा। जलेबियाँ भी खायीं और चाट का आनन्द लिया। यहाँ आकर बाँध का सुन्दर और मनोरम दृश्य भी देखा, किन्तु...।" यह कहते-कहते मोहन रुक गया। तभी उसके मित्र सुरेश ने पूछा कि, "मित्र मोहन! कहते-कहते क्यों रुक गये, बताओ, अब कौन-सी इच्छा शेष रह गयी है? वह भी पूरी की जायेगी।"
मोहन बोला-, "सुरेश! बाँध से निकलता हुआ यह पानी कितना प्यारा लग रहा है! यह उछल-उछलकर ऊपर उठ-गिरकर कितनी तेजी से आगे बढ़ रहा है। मन करता है, इस पानी की लहरों के साथ खेलूँ और इसमें नहाऊँ।" तभी मोहन के दूसरे मित्र रमेश ने कहा, "बस! इतनी सी बात! मन तो मेरा भी यही कर रहा है।" सुरेश बोला, "कहीं अगर गहराई हुई तो..?" मोहन बोला, "उसकी चिन्ता तुम सब मत करो..मैं गहरे पानी में तैरना जानता हूँ। चलो..।" फिर क्या था, मोहन के साथ सभी उठ खड़े हुए और पानी की ओर चल दिए। मोहन का एक मित्र सोहन भी वहाँ उपस्थित था। वह अपनी जगह बैठा रहा। सबने जाते समय उससे पूछा, "तुम क्यों गुमसुम बैठे हो, क्या तुम्हें नहाने नहीं जाना है?" उसने साफ मना कर दिया-, "तुम लोग जाओ, मुझे पानी से बहुत डर लगता है।" मोहन बोला, "तो तुम घर पर नहाते भी न होगे?" मोहन की बात सुनकर सुरेश और रमेश हँसने लगे और बोले, "डरपोक कहीं का..ठीक है, तू यहीं बैठा रह! अगर बीच में मन करे तो आ जाना।" यह कहकर मोहन, सुरेश और रमेश अपने-अपने कपड़े उतारकर पानी में नहाने चले गये। वे तीनों पानी में नहाने लगे और सोहन बड़े ध्यान से उनको देख रहा था। तीनों पानी में उछल-कूद करते और आनन्द मना रहे थे। ऐसा करते उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब गहराई में चले गये। गहराई में जाते ही वे तीनों डूबने लगे और तैरने की कोशिश करने लगे।
सोहन को समझते देर न लगी, वह तुरन्त उठकर कुछ दूरी पर नहा रहे लोगों के पास पहुँचा और बोला, आप लोग जल्दी आइये, मेरे तीनों मित्र पानी में डूब रहे हैं।" सोहन की बात सुनकर कुछ लोग तुरन्त पानी से बाहर आये और बोले, "कहाँ हैं?"
सोहन ने डूब रहे अपने मित्रों की तरफ इशारा किया। वे लोग तुरन्त उस दिशा में भागे और सोहन के तीनों मित्रों को बचाने पानी में कूद पड़े। उन लोगों ने बड़ी मेहनत करके उन तीनों को पानी से बाहर निकाला। उन तीनों की साँसें फूल चुकी थीं। कुछ देर आराम करने के बाद वह सामान्य रूप से साँस लेने लगे। उन लोगों ने सोहन के तीनों मित्रों को बहुत डाँटा और कहा, ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद, जो तुम तीनों बच गये। यहाँ आकर आज तक कोई जीवित नहीं बचा है। तुम लोग अपने इस मित्र के कारण बच गये। अगर ये भी तुम्हारे साथ होता तो फिर क्या होता?" मोहन, सुरेश और रमेश के यह सुनकर रोंगटे खड़े हो गये। उन्होंने सोहन को गले से लगा लिया और कसम खायी कि, "आज के बाद वह कभी बिना जाने-समझे कहीं भी पानी में नहीं नहायेंगे।" तीनों मित्रों ने उन लोगों का आभार व्यक्त किया और अपने-अपने कपड़े पहनकर सोहन के साथ की तरफ चल दिए।

संस्कार सन्देश-
हमें बिना जाने-समझे कभी भी गहरे पानी में नहीं नहाना चाहिए।

कहानीकार-
जुगल किशोर त्रिपाठी (शि०म०)
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
ब्लॉक- मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद 
दैनिक नैतिक प्रभात

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