181/2024, बाल कहानी - 5 अक्टूबर


बाल कहानी - खुला अक्ल का ताला
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एक बार की बात है, रमन, गगन, राजू, माला, मोहन और यथार्थ पड़ोस के गाँव में मेला देखने गये। मेला था तो ठेला भी था और ठेले पर तरह-तरह के सामानों का रेला था। ये सारे बच्चे पहली-पहली बार घर से समूह में मेला देखने निकले थे। रास्ते में हँसी-ठिठोली करते हुए सब मेले पहुँच गये।
मेले की चकाचौंध सबको खूब भा रही थी। रमन ने समोसे, पकौड़ी और जलेबी की दुकान पर जाकर उसका आनन्द उठाया, तो गगन ने चाउमीन तथा बर्गर का। माला ने टिकिया-पकौड़ी छककर खायी। राजू , मोहन और यथार्थ ने सबसे पहले पानी-फुल्की खायी और में संग टिकिया भी खूब उड़ायी। सभी ने अपनी-अपनी पसन्द के झूले भी झूले तथा अपनी पसन्द और जरूरत के हिसाब से कुछ खेल-खिलौंने भी खरीदे। 
सूर्यदेव अस्ताचल की ओर उन्मुख हो रहे थे। मेले की भीड़ अपने-अपने घरों की ओर वापस हो रहे थी। सभी बच्चे भी अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में ही राजू के पेट में दर्द और मरोड़ उठने लगा तथा उल्टी भी आने लगी। घर पहुँचते- पहुँचते राजू की हालत खराब हो गयी। उसके 
पापा तो काम से अभी घर वापस नहीं लौटे थे, इसलिए उसकी माँ पड़ोस के डॉक्टर के यहाँ ले गयी।
डाक्टर ने कहा कि-, "अरे! इस बच्चे को तो कालरा हो गया है। इसने कहीं दूषित पानी पीया है और बासी भोजन किया है।" माँ ने कहा-, "यह दोस्तों के साथ मेला गया था। वहीं पर चीजें खायी है।" डॉक्टर बोला-, "घबराइए बिल्कुल नहीं! आपका बच्चा एकदम ठीक हो जायेगा।" डाॅक्टर ने कुछ औषधियाँ दी और कुछ सावधानियाँ बतायी, जिसका राजू ने पालन किया और स्वस्थ हो गया। अब जब भी वह मेला, बाजार जाता है, तो कुछ भी खाने-पीने से पहले साफ-सफाई और शुद्धता जरूर देखता है और सबको इसके बारे में बताता भी है।

संस्कार सन्देश -
हमें अपने खान-पान की परख करके ही उनका प्रयोग करना चाहिए।

कहानीकार-
सरिता तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला
मसौधा (अयोध्या)

कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
दैनिक नैतिक प्रभात

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