194/2024, बाल कहानी- 24 अक्टूबर
बाल कहानी- भविष्य की चिन्ता
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निहाल सिंह एक धनी व्यक्ति था। उसके पास वावन बीघा जमीन थी। निहालसिंह के पिता एक सरकारी स्कूल में अध्यापक थे। अब वह रिटायर हो चुके हैं। उनके अधिक लाड-प्यार की बदौलत उनका बेटा पढ़ न सका था। निहालसिंह को रोज अपने पिता से मुँह-माँगे रुपये मिलते और वह अपने मित्रों के साथ दिन-भर खाता-पीता रहता और खेलता। लोगों के पूछने पर वह कहते, "बेटे को पढ़ा-लिखाकर क्या करना है? नौ पास कर ली, बहुत है। हिसाब-किताब में कच्चा तो नहीं है?"
यह सुनकर कोई कुछ न कहता।
समय गुजरता गया। निहालसिंह की एक सम्पन्न परिवार में शादी हो गयी। उसकी पत्नी का नाम दीपिका था। वह सभी गृह कार्यों में कुशल थी। वह विनम्र स्वभाव की थी, इसलिए कुछ ही दिनों में उसने सभी का मन जीत लिया था। सभी बहुत खुश थे।
समय और गुजरा। दो साल बाद दीपिका ने निहालसिंह के बेटे को जन्म दिया। खुशियाँ मनायीं गयीं।
कुछ समय और गुजरने पर दीपिका ने निहालसिंह के दूसरे बेटे को जन्म दिया। दो बेटों को पाकर दादा-दादी और माता-पिता ने तो जैसे पूरे जीवन का सुख भोग लिया। दोनों बच्चे नील और अम्बर बड़े हुए। वे दोनों स्कूल जाने लगे, किन्तु दादाजी के अत्यधिक लाड-प्यार ने उन्हें भी लापरवाह और निकम्मा बना दिया। निहालसिंह खेती के काम और देख-रेख में व्यस्त रहता था। उसे अपने पिता पर पूरा भरोसा था कि वह अपने नातियों को अच्छी शिक्षा और संस्कार देंगे, किन्तु उसका यह विश्वास चकनाचूर हो गया। निहालसिंह की तरह अपने नातियों को वह रुपये देकर कहते कि, जाओ, खाओ-पियो-खेलो और मौज-मस्ती करो।"
दोनों नाती दिन-भर खेलते-रहते और इधर-उधर घूमते। लोगों के पूछने पर उन्होंने फिर वही जबाब दिया, "अरे! आप लोग क्यों परेशान होते हैं। नाती मेरे हैं। क्या मुझे उनकी चिन्ता नहीं है? नाती मुझे बहुत प्यारे हैं। यह हमारे ही पास रहेंगे। इन्हें पढ़ा-लिखाकर क्या करना है? हमारे पास किस चीज की कमी है? मैं अपने नातियों को आँखों से ओझल नहीं करुँगा। जमीन और इतना नौकरी का पैसा कहाँ जायेगा, इन्हीं के लिए ही तो है।" लोग सुनकर चुप हो जाते। निहालसिंह तक भी ये बात पहुँची तो पिता के सामने कुछ भी कहने की उसकी भी हिम्मत न हुई। दीपिका बहू ने दादी को उलाहना दी, किन्तु दादी के कहने पर कोई हल न निकला। दोनों नाती केवल कक्षा आठ तक ही पढ़ सके। बड़े होकर वे वैसे ही बने रहे।
दादा-दादी अब गुजर चुके थे। दोनों नाती आवारा होने के कारण खेती के कार्य में भी हाथ नहीं बँटाते थे। निहालसिंह भी अब शरीर से अशक्त हो चुका था। उसने जमीन कटती पर दे दी। बच्चे बड़े हो चुके थे। निहालसिंह को उनकी शादी की चिन्ता होने लगी। बच्चों को ईश्वर के भरोसे छोड़कर निहालसिंह कटती से मिले रुपये से आराम से जीवन-यापन करने लगा।
संस्कार सन्देश -
हमें अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर संस्कारयुक्त बनाना चाहिए अन्यथा वह अपने सही मार्ग से भटक जाते हैं।
कहानीकार-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
ब्लॉक- मऊरानीपुर, झाँसी उ०प्र०)
कहानी वाचन-
नीलम भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
दैनिक नैतिक प्रभात
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