आओ मिलकर पेड़ लगाएँ

आओं हम सब मिलकर पेड़ लगायें ,
मरू होती भूमि को अब हम बचाये।

धरती को दे सदा आभूषण वृक्ष का 
बंजर भूमि  भी पुष्पीत हो लहरायें।

कर्ज  उतार कर  इस वसुन्धरा का 
मृत  जीवन  भी अब अमर बनायें ।

संरक्षित करे दुर्लभ औषधियों को ,
प्राण वायु फैलाने को हरियाली लायें ।

जीवन रेखा हो गई है संकुचित जो ,
काट-काट के वृक्ष जो दिये गिराये।

भारी विपदा की संकेत रूप आके  
अनावृष्टि  ने  धरती दिया सुखाये।

हाहाकार मचा ओजोन सुराख की ,
महाप्रलय  रोकने  को  पेड़ लगायें ।

आठो पहर जो देती वायु सब को ,
बादल रिमझिम  पानी दे बरसाये।

थके परिंदों  का  बना आशियाना ,
घर-आंगन  में देव  सा पूजा जाये ।

करो जतन धरा का सब मिलकर ,
पौधरोपण का एक संकल्प जगायें ।

रचयिता
वन्दना यादव " गज़ल"
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक ,
डोभी , जौनपुर।

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