धूप
रात गयी फैला है उजाला,
सूरज के संग आती धूप।
दुनिया के कोनों कोनों को
सोने सा चमकाती धूप ।।1।।
ऊँचे नीचे पर्वत घाटी में
उछल कूद मचाती धूप।
सागर की लहरों के संग संग
मुस्काती इठलाती धूप।।2।।
कलरव करते विहग उड़ रहे
पंखो को चमकाती धूप।
झर झर झर बहते झरनों में,
रंग नए भर जाती धूप ।।3।।
कलियों संग करती अठखेली,
फूलों को महकाती धूप।
कर आलस को छिन्न भिन्न
नई चेतना लाती धूप।।4।।
गर्मी में न भाये किसी को
आँखे खूब दिखाती धूप।
जब आता सर्दी का मौसम,
सबको खूब भाती धूप।।5।।
वर्षा जब भी आती है,
बादल में छुप जाती धूप।
पड़ती है बारिश की बूंदे,
इंद्रधनुष बन जाती धूप।।6।।
रचयिता
गीता गुप्ता "मन"
प्राथमिक विद्यालय मढ़िया फकीरन,
विकास क्षेत्र - बावन,
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