हिन्दी-उर्दू शान हमारी
मन्दिर न खेत मेरे मस्जिद न मेरी क्यारी,
हम एकता के पौधे एकत्व के पुजारी,
हिन्दी लहू में मेरे उर्दू है घड़कनों में,
दोनों रंग हम पर, दोनों जुबा हमारी।
हिन्दी के साज़ से ही उर्दू का राग निकला,
हिन्दी है गंगा अपनी उर्दू है जमुना प्यारी।
भारत के सिन्धु से ही दोनो रतन है निकले।
दोनोँ से चमकती है निर्मल धरा हमारी।
दोनों में गहरा सागर विस्तार आसमाँ का,
दोनों से व्यक्त होता उद्गार आत्मा का,
दोनों मिली जुली हैं जैसे कि दूध पानी,
दोनों में तेज रवि का सौंदर्य चन्द्रमा का।
रचयिता
कुमकुम श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेहड़ा चौबे,
शिक्षा क्षेत्र-झंझरी,
जिला-गोण्डा।
मौज़ूदा वक़्त में बहुत ही प्रासंगिक और आवश्यक कविता । आपकी सोच के फैन तो हम बचपन से ही रहे हैं अब कविता के भी हो गए , मेरी प्यारी आंटी ।
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