तू नारी है
अपनों ने सताया हमें इतना कि,
दूसरों की तो कोई आस ही ना रही।।
अपनों ने ही न दिया सहारा हमें,
तो दूसरों के विश्वास की कोई प्यास न रही।।
कभी फूलों से पूछा हमने तो कभी हवाओं से,
कभी उस नीले आकाश से,
तो कभी चमकते चाँद से।।
कि क्या था मेरा कुसूर???
क्यूँ छीन लिया मुझसे मेरा सुरूर!!!
नहीं करती कभी,
किसी बात का मैं गुरुर!!!
एक बार तो कह दो,
क्या है मेरा कुसूर??
हँस कर इस जमाने ने कहा मुझसे,
तोड़कर मेरे सपने,
झुकाकर मेरे स्वत्व को,
है तेरी यही सज़ा,
कि तेरी नहीं है कोई खता,
सिवाय इसके कि तू नारी है!!!
सामाजिक बंधनों की,
एकमात्र बन्धनकारी है।।
तू नारी है! तू नारी है!
रचयिता
रुपाली श्रीवास्तव,
प्राथमिक विद्यालय फरीदपुर सलेम,
विकास खण्ड-चायल,
जनपद-कौशाम्बी।
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