प्रकृति वन्दना
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
हरियाली का पोषक बन जीवनदीप जलाता हूँ।
शीतल मंद-सुगंध पवन,
हो गया हृदय मगन।
चीं-चीं करती चिड़ियाँ,
चहक उठा ये गगन।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
जल का संरक्षण कर सब की प्यास बुझाता हूँ।
ताल-तलैय्या उमड़ रहे,
फूल खिले हैं उपवन में।
कल-कल करती नदियाँ,
मोर नाच रहे हैं वन में।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
पर्यावरण की रक्षा कर प्राणवायु पहुँचाता हूँ।
पेड़ लगाओ-वृक्ष न काटो,
कहते संयासी वैद्य हकीम।
घर-घर प्राण वायु पहुँचाते,
बरगद तुलसी पीपल नीम।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
'जल ही जीवन है' स्मरण यही कराता हूँ।
दूषित नित जीवनशैली से,
जीवों का हो रहा पतन।
पल-पल जीना मुश्किल,
खो रहा है चैनो-अमन ।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
नवजीवन संकल्प नए,पग-पग जल बचाता हूँ।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
हरियाली का पोषक बन जीवनदीप जलाता हूँ।
शीतल मंद-सुगंध पवन,
हो गया हृदय मगन।
चीं-चीं करती चिड़ियाँ,
चहक उठा ये गगन।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
जल का संरक्षण कर सब की प्यास बुझाता हूँ।
ताल-तलैय्या उमड़ रहे,
फूल खिले हैं उपवन में।
कल-कल करती नदियाँ,
मोर नाच रहे हैं वन में।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
पर्यावरण की रक्षा कर प्राणवायु पहुँचाता हूँ।
पेड़ लगाओ-वृक्ष न काटो,
कहते संयासी वैद्य हकीम।
घर-घर प्राण वायु पहुँचाते,
बरगद तुलसी पीपल नीम।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
'जल ही जीवन है' स्मरण यही कराता हूँ।
दूषित नित जीवनशैली से,
जीवों का हो रहा पतन।
पल-पल जीना मुश्किल,
खो रहा है चैनो-अमन ।
हंसवाहिनी-ज्ञानदायिनी को शीश झुकाता हूँ।
नवजीवन संकल्प नए,पग-पग जल बचाता हूँ।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
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