मेरा बचपन
मेरे भोले बचपन का
संसार बहुत सलोना था,
जीवन के संसार में अपने
क्षण-प्रतिक्षण हँसना रोना था,
मेरे भोले बचपन का
संसार बहुत सलोना था।
चंदा को पास बुलाने का
कागज की नाव चलाने का,
जीवन का सच्चा मूल लिये
मिट्टी का तेल खिलौना था,
मेरे भोले बचपन का
संसार बहुत सलोना था।
बचपन की इस सीमा में
जीवन का उतार-चढ़ाव रहा,
शिक्षा के उत्तुंग शिखर पर
तीव्र कदम से बढ़ता ही रहा,
मेरे भोले बचपन का
संसार बहुत सोना था।
कभी तितली को पकड़ना
कभी अपनों से झगड़ना
मेरे बचपन की कहानी थी,
कभी हँसना कभी रोना था
मेरे भोले बचपन का
संसार बहुत सलोना था।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
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