जिन्दगी एक सफर
फूल काँटों से पलकर अगर जो खिले,
तो बहारों की कोई जरूरत नहीं।
आदमी दर्द लेकर जो चलता फिरे,
तो हजारों की कोई जरूरत नहीं।
जिन्दगी की सफर एक ऐसी यहाँ,
कोई उठता गया कोई गिरता रहा ।
सारथी न मिले तो अकेले चलो,
उन हजारों की कोई जरूरत नहीं।
फूल काँटों से पलकर अगर जो खिले,
तो बहारों की कोई जरूरत नहीं।
जिन्दगी की घड़ी एक सुहानी घड़ी,
कोई हँसता रहें कोई रोता फिरे ।
हमसफर न मिले तो अकेले चलो,
उन सहारो की कोई जरूरत नहीं।
फूल काँटों से पलकर अगर जो खिले,
तो बहारों की कोई जरूरत नहीं।
मानव ही मानव का दानव बना,
मानवता शर्मसार हो ही गयी।
मानव न मिले तो अकेले चलो,
उन दानव की कोई जरूरत नहीं
फूल काँटों से पलकर अगर जो खिले,
तो बहारों की कोई जरूरत नहीं ।
रचयिता
बिधु सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गढी़ चौखण्ड़ी,
विकास खण्ड-बिसरख,
जनपद-गौतमबुद्धनगर।
Good
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