चलो आज फिर मुस्कुराते हैं

चलो आज फिर हँसते हैं,
फिर से मुस्कुराते हैं,
ग़म लाख बेशक हों मगर,
चलो आज फिर से गुनगुनाते हैं,

चलो आज फिर हँसते हैं,
चलो आज फिर मुस्कुराते हैं....

अंधेरा बहुत है धरा पर,
उजाला मिट रहा है हर तरफ़,
क्यों न एक दीपक तुम और
एक दीपक हम जलाते हैं,

चलो आज फिर हँसते हैं,
फिर से मुस्कुराते हैं..........

नफ़रतें अपनी तुम रख दो उस किनारे,
नफ़रतें अपनी हम  रख दें इस किनारे,
चलो फिर आज हम उनके बीच,
एक प्यार का दरिया बहाते हैं।

चलो आज फिर से हँसते हैं,
चलो आज फिर से मुस्कुराते हैं...

न सोच तू कि डगर लंबी है बहुत,
न मान कि सफर बड़ा मुश्किल है,
कदम रुक गए थे थक हार के तेरे,
चलो वहीं से कदम फिर बढ़ाते हैं।

चलो आज फिर हँसते हैं,
चलो फिर से मुस्कुराते हैं.......

राह तो चुनी थी हमने भलाई की,
रास्ते निकलते हैं यहीं होकर बुराई के,
रखना कदम सम्भल-सम्भल कर इस डगर पर,
काँटे यहीं हर रोज कुछ लोग बिछाते हैं।

चलो आज फिर हँसते हैं,
चलो आज फिर मुस्कुराते हैं....

रचयिता
नियाज़ मीर, 
इंचार्ज प्रधानधयापक, 
प्राथमिक विद्यालय कचैड़ा वारसाबाद-2
वविकास खण्ड-बिसरख, 
जनपद-गौतम बुद्ध नगर।

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