चन्दन जैसा महको


फूल बनो खिलकर इस जग में,
चन्दन के जैसा महको तुम।

इस जग के हरे  बगीचे में,
पंछी सा कलरव करना तुम।

सबको सुख अनुभूति मिले,
कुछ नवनूतन कर जाओ तुम।

कर्तव्य मार्ग पर चलकर के,
सबके मन में बस जाओ तुम।

आलस्य उदासी निष्क्रियता,
को त्याग कर्म को अपनाओ।

मन को मोड़ो,भय को छोड़ो,
नित नए राग को गाओ तुम।

हो मार्ग कठिन तूफ़ान भयंकर,
न होना किंचित तुम निराश।

सांझ का दीपक बन जाओ,
सूरज के जैसा चमको तुम।।

फूल बनो खिल के इस जग में,
चन्दन के जैसा महको तुम।

इस जग के  हरे  बगीचे में,
पंछी के जैसा चहको तुम।।

रचयिता
प्रभात कुमार(पॉजिटिव),
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय महावां
विकास खण्ड-सरसवाँ
जनपद-कौशाम्बी।

Comments

  1. very nice brother...keep it up...
    good...good...very good...
    virendra.

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