हिंदी हो गयी बेगानी

अपने देश में ही मैं हो गई बेगानी,
दिवस हिंदी तक सिमटी मेरी कहानी,
गैरों से क्या गिला, गम अपनों से है मिला,
इंग्लिश के प्रेम में तुमने बनाया हिंग्लिश,
कैसे बचेगी हिंदी और हिन्दोस्तां हमारा,
कहते सभी मुझे मीठी-सरल है भाषा,
फिर भी जुबां पर सबके रहती क्यों निराशा।।
रत्नाकर, केशव, बिहारी का श्रृंगार थी मैं,
कबीर, सूर, तुलसी की भक्ति थी मैं,
दिनकर की वाणी का हुँकार थी मैं,
सुभद्रा के दिल का उद्गगार थी मैं।
मैं वो भाषा हूँ जिसने,
आजादी की जंग जीती है,
बजा देती थी बिगुल जब,
शब्दों से अपने मैं,
लाखों न्यौछावर हो जाते थे,
न यूँ ही रणभूमि पर।
दिवस हिंदी पर अब,
न तारीफ अच्छी लगती है,
करो ऐसा भी कुछ अब,
दिवस हिंदी ही हर दिन हो,
तुम्हारी अपनी हूँ और सदा रहूँगी अपनी ही,
अपने देश में ही मुझे न करो बेगाना तुम,
दिवस हिंदी तक न सिमटे मेरी कहानी अब।।

रचयिता                                  
चंचला पाण्डेय,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मसीरपुर, 
विकास खण्ड-बिलरियागंज, 
जनपद-आज़मगढ़।

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