हमारे बाल विद्यार्थी

नन्हें बच्चों की टोलियाँ, जब स्कूल में आती हैं,
मेरे विद्यालय प्रांगण को, वो खूब महकाती हैं।

बच्चों की मुस्कान देख, समय ठहर सा जाता है,
प्रसन्नचित्त हो चिड़िया भी मीठे गीत सुनाती हैं।

विद्यालय परिसर में, वृक्षों से हरियाली छायी है,
उन पर पड़कर धूप, सतरंगी इंद्रधनुष बनाती है।

लगता है, मेरा विद्यालय एक सुन्दर उपवन जैसा,
मेरे मस्तिष्क में, कई कविताएँ स्वयं बन जाती हैं।

करती है बालिकाएँ, जब मंजरी का सस्वर वाचन,
लगता है, मंद स्वर में बुलबुलें, मधुर गीत गाती है।

अंग्रेजी पढ़ते बच्चे, मुझे लगते हैं कलरव करते से,
अंग्रेजी भाषा भी, अब बच्चों को कितना भाती है?

गणित, विज्ञान को, खूब ध्यानमग्न हो पढ़ते हैं?
जिससे इनकी दिमागी कसरत, खूब हो जाती है।

विद्यालय मार्ग से दिखती, ये पके धानों की बाली,
कराती है अहसास, शीघ्र आने वाली है दिवाली।

कितने महान हैं,भारत और भारतीय संस्कृति,
जो बच्चों को एकता, प्रेम भाईचारा सिखाती है।

रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।

विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।

Comments

Total Pageviews