मेरा वजूद

मैं खुद को तराशती हूँ
अपने वजूद को निखारती हूँ
कदम-कदम के संघर्षों से
खुद को पहले से मजबूत बनाती हूँ
नया कुछ भी नहीं मेरे लिए
ना बाधाएँ और ना ही तकलीफें
पर मैं समेटकर अपनी ऊर्जा को
अपनी राहें खुद ही बनाती हूँ
जब कभी थक जाती हूँ
दुनिया के छल से
तो शांत मन से बैठकर
अपने लक्ष्यों को दोहराती हूँ
रुकना नहीं है बीच राह में
मैं खुद को हर पल ये समझाती हूँ
समाधान हो जाये हर समस्या का
इसलिए मैं खुद को भी आजमाती हूँ
अपनी शर्तों पर है मेरी जिन्दगी
किसी के लिए नहीं बदल पाती हूँ
मेरे अपने मेरे सपने
यही तो हैं मेरी ताकत
सही-गलत मायने रखते हैं मेरे लिए
तभी सच्चाई के साथ चल पाती हूँ

रचयिता
मृदुला वैश्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मीठाबेल,
विकास खण्ड-ब्रह्मपुर,
ज़िला-गोरखपुर।

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