मैं आपकी हिन्दी हूँ


हाँ, मैं आपकी हिन्दी हूँ, मुझे आपके घर में सम्मान चाहिए।
      
     आज हिन्दी दिवस है। हमें अपनी माता, जन्मभूमि और मातृभाषा का हृदय से सम्मान करना चाहिए। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। जब कोई शिशु पहला अक्षर बोलता है तो वह 'माँ' ही होता है ‌ जो कि मुखद्वार के कपाट, होंठों से प्रारम्भ होता है। 
यानी कि 'मा मा मा मा....'
उसके बाद 'पा पा पा पा....'
यही अक्षर विन्यास धीरे-धीरे शब्दों का रूप ले लेते हैं और उसके बाद वाक्यों का और धीरे-धीरे हिन्दी बोलने का सिलसिला प्रारम्भ होता है।
      
हम बच्चों को भले ही अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में क्यों न पढ़ाएँ अलबत्ता हमें हिन्दी भाषा को मन से सर्वोपरि रखना चाहिए और अधिक से अधिक प्रयोग भी करना चाहिए। जो अभिव्यक्ति, भाव या भावना हम हिन्दी में सम्प्रेषित कर सकते हैं वह किसी अन्य भाषा में नहीं। 

किसी अन्य भाषा का ज्ञान होना अच्छी बात है परन्तु अपनी मातृभाषा को वरीयता देना भी आवश्यक है। बहुधा मैं यह देखता हूँ कि जो छात्र अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ते हैं वह हिन्दी की तरफ कम ध्यान देते हैं और हेय दृष्टि से देखते हैं। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कोई व्यक्ति अच्छा पढ़कर दूरस्थ स्थान पर नौकरी पा जाए और वहाँ की पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता में रच-बसकर अपने माता-पिता का सम्मान करना भूल जाएँ। आप यह सदा ध्यान रखें किसी भी वृक्ष की शाखाएँ जड़ से दुश्मनी रखकर पल्लवित नहीं हो सकतीं। आजकल हिन्दी की बोलचाल में अंग्रेजी के शब्दों का मिश्रण जमकर होता है। यह दिखाने के लिए कि हम अंग्रेजीदां हैं। यह उन बच्चों की गलती नहीं है। इसमें हम सभी जिम्मेदार हैं। जिन स्कूलों में हम अपने बच्चों को पढ़ाते हैं वह अक्सर अंग्रेजी माध्यम के ही हैं और उन विद्यालयों में कभी-कभी हिन्दी बोलने पर दण्ड शुल्क भी लगाया जाता है और उस शुल्क की प्रतिपूर्ति भी हम सहर्ष यदा-कदा करते रहते हैं। क्या यह हिन्दी का अपमान नहीं है? क्या हिन्दी दिवस के अवसर पर ही हमें हिन्दी का सम्मान करना चाहिए? क्या पितृ दिवस या मातृ दिवस पर ही हमें माता-पिता का पूजन करना चाहिए।
हिन्दी को बहुत से प्रसिद्ध लेखक और कवियों ने उसके ऊर्ध्व तक पहुँचाया है। जिनमें मुख्य रूप से श्री जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद, मलिक मुहम्मद जायसी, विष्णु शर्मा, मैथिली शरण गुप्त, रामचन्द्र शुक्ल, जयदेव, गोस्वामी तुलसीदास, रामधारी सिंह दिनकर, देवकीनन्दन खत्री, बाणभट्ट, बंकिमचंद्र चटर्जी, रविन्द्र नाथ टैगोर, हरिवंशराय बच्चन, कालिदास, सूरदास, सुमित्रानंदन पन्त, अयोध्या प्रसाद उपाध्याय 'हरिऔध', बालकृष्ण शर्मा, चंद्रबरदाई, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', फणीश्वर नाथ 'रेणु', वृन्दावन लाल वर्मा, कबीर, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, धूमिल, केशवदास आदि शामिल हैं। इनके युग में हिन्दी खूब 'अमीर' रही।
        अगर पुराने समय के सिनेमा जगत की बात करें तो उस जमाने का हिन्दी सिनेमा और उसके गीत आज भी दिल से निकलकर आँखों के माध्यम से बाहर आ जाते हैं। हिन्दी संगीत ने बेहतरीन गीतकारों की एक परंपरा की शुरुआत कर संगीत प्रेमियों को यादगार तोहफा दिया। 'आलम आरा' के साथ चला गीतों का कारवां कुछ उतार-चढ़ाव के साथ चलता रहा और आज भी जारी है। इन गीतकारों की श्रेणी में कई ऐसे फनकारों के नाम लिए जा सकते हैं जिनके गीत लोगों की जुबान पर चढ़कर बोले, लेकिन आज उन्हें भुला दिया गया। गीतकार कमर जलालादावादी, भरत व्यास, हसन कमाल, एस. एच. बिहारी, असद भोपाली, पंडित नरेंद्र शर्मा, गौहर कानपुरी, पुरुषोत्तम, शेवान रिजवी, अभिलाष, रमेश शास्त्री, बशर नवाज और खुमान बाराबंकी जैसे कई नाम हैं जिन्हें वक्त से साथ हम भूलते गए लेकिन उनके लिखे गीत आज भी आँखें नम कर देते हैं। फिल्म 'महुआ' का गीत 'दोनों ने किया था प्यार मगर...', 'हावड़ा ब्रिज' का 'आइए मेहरबान...', 'हिमालय की गोद' में का 'मैं तो एक ख्वाब हूँ...' जैसे गीतों को समय के दायरे में नहीं बाँधा जा सकता, लेकिन आज कम ही लोगों को मालूम होगा कि इसे कमर जलालाबादी ने लिखा था। इसी तरह, फिल्म 'बूँद जो बन गई मोती' के गीत 'यह कौन चित्रकार है...', 'संत ज्ञानेश्वर' का 'ज्योति से ज्योति जले...', 'रानी रूपमती' का 'आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं...' को कौन भुला सकता है। इसे कलमबद्ध करने वाले गीतकार भरत व्यास हैं। रमेश शास्त्री का नाम लेने पर आज कम ही लोग उन्हें पहचान पाएँ लेकिन मशहूर गीत 'हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा...' उन्हीं की कलम की उपज है। इसी प्रकार पुरुषोत्तम पंकज द्वारा लिखे गीत 'चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा...', गीतकार अभिलाष के गीत 'इतनी शक्ति हमें देना दाता...' एस. एच. बिहारी के गीत 'कजरा मुहब्बत वाला...,' 'जरा हौले-हौले चलो मेरे साजना', नरेंद्र शर्मा द्वारा लिखे गीत 'यशोमती मैया से बोले नंदलाला...' को कौन भुला सकता है लेकिन कलम के इन जादूगरों को आज भुला दिया गया। आजकल के गाने आपने सुने होंगे कैसे हैं।



लेखक
योगेश शर्मा,
मेरा गांव:
बरई कल्यानपुर, अवागढ़, एटा
वर्तमान पता:
24, मानसरोवर कॉलोनी, 
आगरा रोड, एटा (उ.प्र.)

Comments

Total Pageviews