नीर

बड़ा कठिन जीवन बिन नीर..
सही नहीं जाए अब पीर..
समय है ये संरक्षण का..
विपदा आ रही  गंभीर।।

बूँद-बूँद का मोल समझ ले..
पानी है अनमोल समझ ले..
व्यर्थ नहीं जाने देना तू..
बदल दे अपनी तकदीर।।

समस्या है ये बड़ी जटिल..
श्वांसें भी हो रहीं विरल...
कदम कदम फूँककर चल...
सहेज ले अपनी जागीर।।

फसलें झूम-झूम लहरायें..
समय पर जब वे सींची जाएँ..
हल बैल भी नाचें गाएँ...
बदल रही अपनी तस्वीर।।

मीठी अमृतधारा जल है...
पशु पक्षी बिन जल बेकल हैं...
संरक्षण है एकमात्र उपाय...
जगा ले अब अपना ज़मीर।।

रचयिता
पूजा सचान,
सहायक अध्यापक,
English Medium 
Primary School Maseni,
Block-Barhpur,
District-FARRUKHABAD.

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