सिसकती बेटियाँ

अजन्मी बेटियाँ कहती,
हमें क्यों गर्भ में मारा है।
हमारे जन्म के बिन पुरुष,
क्या अस्तित्व तुम्हारा है।

लगा क्यों अब ये पहरा है,
समाज हुआ क्यों बहरा है।
सिसकती गर्भ में बेटी,
 न दिखता कोई सहारा है।।

जन्म दो मात मुझको तो,
बनूँगी आपका सहारा है।
करुँगी भाल मैं ऊँचा,
ये सोचा और विचारा है।

मनुजता का ये पैमाना,
पुत्र चंदा सितारा है।
अजन्मी कोख में मैं हूँ,
मुझे क्यों मात मारा है।

तुम भी बेटी ही थी माँ,
मुझे तुमसे ही सहारा है।
बनोगी मात तुम मेरी,
होगा उपकार तुम्हारा है।

रचयिता
श्रीमती नैमिष शर्मा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय-तेहरा,
विकास खंड-मथुरा,
जिला-मथुरा।
उत्तर प्रदेश।

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