अंधेरी नगरी चौपट राजा

महंत शहर के बाहर खड़े
तोड़ना उनको उपवास,
भेजे खाना खोजने चेले
नारायण और गोवर्धनदास।
गोवर्धन बहुत ही खुश दिखा
मालूम गठरी बहुत भारी,
कह गुरु से यहीं रहूँगा
दाम टका सेर मिठाई-तरकारी।
पहला दृश्य बीत गया
दृश्य दूसरे में था राजा,
नाम कहानी सुनो बालकों
भाजी टका सेर और खाजा।
फरियादी की मरी बकरी
करता वो रो रो दुहाई,
फाँसी पर उसे लटकाओ
जिसने है दीवार बनाई।
कल्लू बनिया, कारीगर, भिश्ती
गड़रिया, कसाई, सिपाही,
अंत निर्णय हुआ तभी
कोतवाल की शामत है आई।
तीसरा दृश्य हुआ आरम्भ
चेला गोवर्धन दिखा मोटा,
रखी एक तरफ खूब मिठाई
दूजी तरफ दूध का लोटा।
देख सिपाही आता हुआ
आँख उसकी घबराई,
सिपाही नापे गर्दन मोटी
फाँसी की खबर उसे सुनाई।
स्मरण करता अब गुरु को
हो गयी गलती आ जाओ,
अंधेर नगरी के अंधेर फरमान
इस बार मेरी जान बचवाओ।
कान में फूँक मन्त्र चेले के
फिर करते एक दूजे से मन्नत,
शुभ बेला जो फाँसी लटके
वो सीधा पहुँचे है जन्नत ।
है तैयार अब मरने को
दिमाग सब का फिर गया,
अंत राजा कह खुद लटका
नाटक का पर्दा गिर गया।
लोभ है एक बुरी बला
बच्चों रहना इससे दूर,
मुसीबत करीब आ जाती है
चाहें न तुम्हारा कसूर।।

रचयिता
योगेश कुमार,
सहायक अध्यापक,
नंगला काशी 
विकास खण्ड-धौलाना,
जनपद-हापुड़।

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