मातृभाषा हिन्दी

मातृ भाषा, पितृ भाषा,
है हमारी सखी भाषा।
स्नेह पूरित, लावण्यमयी,
ओज, तेज, प्रकाशमयी।
जग की न्यारी मेरी भाषा,
है अनोखी मेरी भाषा।
भावपूर्ण, विवेकपूर्ण,
सम्मानजनक है मेरी भाषा।
श्रेष्ठता की पराकाष्ठा,
तेजोमय, उज्ज्वल है भाषा।
है अनोखी हिन्दी भाषा।।
साहित्य का जुड़ाव हो या,
लेख कविता राग हो।
प्रेम पूर्वक समा जाती,
प्रियतम की प्रेयसी सी भाषा।
हो जगत विख्यात पा के लेखनी की पूर्णता,
गहन ग़हराई सागर सी।
गम्भीर है ये मेरी भाषा।
है अनोखी हिन्दी भाषा।
सैकड़ों जन हो वीराने
मध्य बनती प्राण प्यारी,
हैं कई तेरे रूप निराले,
भावमयी है मेरी भाषा।
है अनोखी मेरी भाषा।
विवेक शून्य है महान बनता,
ज्ञान और पहचान बनता।
अनुपम, अलौकिक मेरी भाषा,
है अनोखी हिन्दी भाषा।
श्रद्धा सुगन्धित मन्द पवन जस,
आनन्दित है मेरी भाषा।
श्रेष्ठतम्, भावमयी, वसुधा जस,
धवल वन्दनीय है हिन्दी भाषा।।
पूजनीय है हिंदी भाषा।।।।

रचयिता 
ममता प्रीति श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बेईली,
विकास खण्ड-बड़हलगंज,
जनपद-गोरखपुर।

Comments

  1. अति सुंदर एवं ओजपूर्ण

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  2. अति सुन्दर कविता है मामी जी





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