हिंदी हूँ मैं

हिंदी हूँ मैं, हिंदी हूँ मैं,
भारत की पहचान।
भावनाओं को मैं ही तो,
देती एक ज़ुबान।
खुली बाहों से लेकर सबको,
साथ चली मैं।
उर्दू, फ़ारसी,अंग्रेजी के,
शब्दों को समझी मैं।
देवनागिरी लिपि को जानो,
अपने मे विज्ञान।
हिंदी हूँ मैं, हिंदी हूँ मैं,
भारत की पहचान।
गर्व हुआ था मुझको उसपर,
आया नया विहान।
संयुक्त राष्ट्र में जब गूँजा था,
मेरा अटल महान।
हिंदी हूँ मैं.......
झंझावत से जब जूझी मैं,
मिल गया एक गोदान।
मधुशाला सी कविता में है,
मस्ती का सम्मान।
हिंदी हूँ......
गुमसुम से क्यों बैठ गए,
अट्टहास पर लेखनी थाम।
मैं तुमसे हूँ, तुम मुझसे हो,
मुझसे बुन लिया अपना नाम।
हिंदी हूँ मै.....
प्रथम शब्द जीह्वा पर आए,
बोले थे वो 'माँ'।
मातृभाषा फिर क्यों भूले,
हिंदी बोलो, हाँ'।
हास्य रुदन, हर गीत सखी री,
हिंदी शब्दों का है गान।
हिंदी हूँ मैं, हिंदी हूँ मैं,
भारत की पहचान।
             
रचयिता
रश्मि मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मरुआंन,
जनपद-प्रतापगढ़।

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