माँ वसुंधरा

घन तिमिर में प्रकाश पुंज सा,
उद्दीप्त करती माँ वसुंधरा।
स्नेहपूरित, सारगर्भित,
राग मय माँ वसुन्धरा।
विह्वल, चपल मुख कान्ति गौरव,
मुस्कान अधरों पर सजाये माँ वसुंधरा।
मधुमास हो या ताप उष्ण,
समभाव दर्शाये माँ वसुन्धरा।
हरीतिमा श्रृंगार माँ का,
निज छाई लाली नववधू जस।
हो जब छिन्न -भिन्न श्रृंगार  दोहन,
तड़प जाती माँ वसुन्धरा।
मनदम पवन के झोंके जस,
ममता भरा आँचल पसारे।
स्वजनों को दे शीतलता,
सुखद स्वप्निल निद्रा दे माँ वसुन्धरा।
विचलित होता हृदय मेरा,
माँ की व्यथा को देखकर।
सबको समेटे स्नेह में माँ,
हरीतिमा संग -साथ में।
पल-पल कटती, कतरा-कतरा,
करुण क्रन्दन से चीत्कारती माँ वसुंधरा
  माँ वसुन्धरा।।।

रचयिता 
ममता प्रीति श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बेईली,
विकास खण्ड-बड़हलगंज,
जनपद-गोरखपुर।

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