जंगल

सघन वन है
शांत मन है
नीड़ से पंछी सवेरे उड़ गये हैं
फूल जो अधखिले थे,
अब खिल गये हैं
नदी कल-कल धुन गुँजाती
बह रही है
ध्यान से सुन
मस्त कोकिल तान से कुछ
कह रही है
ये भयावह रात बीती
कालिमा से जो सनी थी
बात बीती
पेड़ से छनकर के आती रोशनी है
अभी निकले तरु पल्लवों को
देखनी है
पेड़ के गवाक्ष से
वो झाँकते हैं
हवा का धक्का लगे
तो काँपते हैं
ये प्रकृति है
देख लो
महसूस कर लो
क्या पता कल
चिमनियों के जंगलों में
कहीं जंगल खो न जायें
और हो एहसास कि
हैं आँख में आँसू
मगर हम रो न पायें

रचयिता
राहुल श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राथमिक विद्यालय गोगूमऊ,
विकास खण्ड-सरवनखेड़ा,
जिला-कानपुर देहात।

Comments

  1. ज्वलंत समस्या की ओर इंगित करती, सरल किन्तु गंभीर रचना, बधाई हो राहुल जी 💐💐

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  2. वर्तमान को भविष्य के लिए जागृत करने का बौद्धिक उपचार । बधाई हो अनुज राहुल


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