अध्यापक की चाह

चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।
चाह नहीं मैं दुनिया की चकाचौंध में
खुद की गरिमा को भूल जाऊँ।।         

चाह नहीं मैं इस जगत में कुछ पाकर इतराऊँ।
चाह नहीं मैं इस संसार में सबसे बड़ा कहलाऊँ।।
चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।
चाह मेरी बस इतनी प्रभु मुझे ऐसा ज्ञान दो,
मैं ज्ञान का सूर्य बनकर,
ज्ञान के अमर पुन्ज से जगत के
हर प्राणी का कल्याण कर पाऊँ।।                           

चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।
न रहे वसुधा पर कहीं अज्ञान का तिमिर
मैं ज्ञान का ऐसा दीप जलाऊँ।।

इस धरा पर हर कण-कण से
अज्ञानता का समूल नाश कर पाऊँ।।
चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।
विधाता मुझे बस देना इतना वरदान 
संसार में जीवन भर सबसे सदा मान-सम्मान पाऊँ।।

हर प्राणी के मन में स्वयं के प्रति श्रद्धा और विश्वास बढाऊँ।
एक प्रार्थना है प्रभु से प्रतिक्षण ज्ञान बाँटता जाऊँ।।

इस धरा पर सबको खुशहाली देकर खुद में खुशहाली पाऊँ।
चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।।
चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।।
चाह नहीं मैं पुरस्कारों से नवाजा जाऊँ।।।

रचयिता
अजय कुमार श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय टेवाँ प्रथम,
विकास खण्ड-मंझनपुर, 
जनपद-कौशाम्बी।।


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