बाल दिवस

महसूस होता है मुझे आज भी

मेरे बचपन का वो जमाना

वो गुड्डे गुड़िया का खेल और

कागज़ की कश्ती का तैर जाना

पता भी नहीं चला कब बीत गया

वो प्यारा सा बचपन का नज़राना


महसूस होता है मुझे आज भी

वो मेरी सखियों का साथ

एक अलग रौनक होती थी 

हँसी खुशी से मिल बैठ करते थे जब बात

जाने कहाँ गए वो दिन होती थी जब

छोटी-छोटी खुशियों की बरसात


महसूस होता है आज भी वो मायका 

जिसमें था जाने कितना अपनापन

माँ की मधुर-मधुर यादें और

पिता का थोड़ा सा कड़वापन

जाने क्यूँ छूट जाता है एक बेटी से

उसका वो सारा भोलापन


महसूस होता है आज भी

मेरा वो प्यारा सा गाँव

जहाँ सब एक दूजे संग

रखते थे प्रेम का भाव

जाने क्यूँ और कहाँ खो गई

वो ठंडी नीम की छांव


रचयिता

पारुल चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय हरचंदपुर,
विकास क्षेत्र-खेकड़ा,
जनपद-बागपत।


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