छठपर्व

 भरो हृदय में अति आस्था और विश्वास,

 सूर्य देवता छठी मैया करेंगे पूरी आस।।

 परवैतिन कर लो व्रत पूर्ण रहे जब तक श्वांस, 

 सच्ची श्रद्धा रखोगे तो होंगे नहीं निराश।।


 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में,

 होता है छठ पूजा का विधान।

 चार दिवस के पावन व्रत से,

 होता जनमानस के कष्टों का निदान।।


 अर्घ्य देकर करें सूर्य देव की पूजा,

 सर्व मनुष्य के तेज का है जीवन आधार।

 कार्तिकेय की भार्या है छठी मैया जी,

 भाई-बहन के प्रेम का प्रकट करो आभार।।


 बाँस की टोकरी सूप दूध थाली,  

 चावल सिंदूर दीपक पान सुपारी।

 हलवा नींबू शहद कपूर चंदन  खीर,

 ठेकुआ मालपुआ पूजा की है सामग्री सारी।।


 प्रथम दिवस 'नहाए खाए' के रूप में मनाए,

 द्वितीय दिवस 'खरना' का प्रसाद बटवायें।

 तृतीय दिवस ठेकुआ लड्डुओं का सूप सजाएँ, 

 अंतिम दिवस सूर्य को अर्घ्य देकर खाएँ।।


  सुने किवदंती की मान्यता के अनुसार,

  श्री राम सिया ने भी किया था यह उपवास।

  महाभारत में कर्ण भी था रवि उपासक,

 द्रोपदी ने भी इस व्रत से लगाई थी आस।।


 छठी मैया के गीत का अर्थ भी,

 जानो सभी उपासक व्रत धारी।

 एक तोता मंडराता केले के गुच्छे के तीर,

 मारी चोंच तो सूर्य देंगे दंड भारी।।


 जूठा किया शुक ने कदली का फल,

 बना सूर्य के कोप का अतिभागी।

 करी नष्ट पूजा की सारी पवित्रता,

 रह गई भार्या सुगनी अकेली बैरागी।।


रचयिता

गीता देवी,

सहायक अध्यापक,

प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,

विकास खण्ड- बिधूना, 

जनपद- औरैया।



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