मैंने गाँव खाली होते देखे हैं

मैंने अपने गाँव खाली होते देखे हैं।
बुजुर्ग और भाई बन्ध रोते देखे हैं।

चलने दो मुसाफिरों को, पैदल गाँव तक।
पड़ने जाने दो छाले मेहनती पाँव तक।
अपने के ठुकराये परायों के गले लगकर
मैने बड़े बुजुर्ग घुट-घुटकर रोते देखे हैं

मैने अपने गाँव खाली होते देखे हैं।
बुजुर्ग और भाई बन्ध रोते देखे हैं।

मत ठुकराओ इन्हें वापिस आने पर।
रोक लो इन्हें तुम शर्मिंदा हो जाने पर
छाप छोड़ दो उनके मानस पटल पर।
कुछ लोग शहरों की चकाचौंध मे खोते देखे हैं

मैने अपने गाँव खाली होते देखे हैं।
बुजुर्ग और भाई बन्ध रोते देखे हैं।

रचयिता
सावित्री उनियाल, 
सहायक अध्यापक,
राजकीय जूनियर हाईस्कूल चिनाखोली,
विकास खण्ड-डुंडा,
जनपद-उत्तरकाशी,
उत्तराखण्ड।

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