ये वक्त है

हे मानव! ये वक्त है आत्म मंथन का।
हे मानव!  ये वक्त है प्रकृति के चिंतन का।
प्रकृति ने दिया मौका एकांत में बैठकर सोचने का,
उसकी अहमियत समझने का,
क्या है अभिन्न अंग उसके संतुलन का,
नहीं है अधिकार किसी को उसे रौंदने का।
ये वक्त है अपने अस्तित्व को जानने का,
भौतिकवाद से ऊपर उठ जीवन के मूल्यों को अपनाने का,
प्रेम, परिवार, परोपकार यहीं हैं सत्य इस संसार का।
ये वक्त है ख़ामोशी के मंज़र की आवाज़ को सुनने का,
सभी धर्मों से ऊपर मानव धर्म निभाने का,
जियो और जीने दो के वचन को साकार करने का,
सीमाओं से परे पृथ्वी पर मानव जीवन बचाने का।
ये वक्त है अपनी भूमिका को पहचानने का,
खुद को नियमों में बाँधकर हर संकल्प को पूरा करने का,
आज हर शख्स है योद्धा कोरोना महामारी के महायुद्ध का,
धरा के नव निर्माण का, यहाँ पुनः खुशियाँ लाने का।
हे मानव! ये वक्त है आत्म मंथन का।
हे मानव! ये वक्त है प्रकृति के चिंतन का।   
             
रचयिता
रचना देवी,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय रजऊ,
विकास क्षेत्र-फरीदपुर,,
जनपद-बरेली।

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