घर पर रहकर

है प्रकृति की मार या कोई प्रारब्ध है।
सड़कें गलियाँ सूनी, हर कोई स्तब्ध है।।
देश से विदेश तक, बढ़ रहा कैसा कहर।
चमन में आखिर किसने घोल दी जहर।।
किन दुश्मनों की, बुरी नजरें गड़ गयीं।
रोटी की चिंता भी, देखो छोटी पड़ गयी।।
मानवता की खातिर, खुद को सँभाले रखना।
हो उदासी फिर भी, मन में उजाले रखना।।
घर पर रहकर, तुम देते रहना सबका साथ।
दिन में बार-बार, धोते रहना अपना हाथ।।
भीड़-भाड़ से सभी, अपने को बचाए रखना।
छींक, खाँसी हो या ना, मास्क लगाए रखना।।
रक्षक बन प्रशासन, निभा रहा जिम्मेदारी।
होगी गुलजार गलियाँ, भागेगी महामारी।।
धरा के देव स्वास्थ्य विभाग का, है एहसान।
निज स्वच्छता का, चलता रहे यह अभियान।।
सरकारी आदेशों को, हर पल समझना होगा।
अपने कर्तव्य के प्रतिज़ खुद सँभलना होगा।।
घर पर रहकर भी, रिश्ते निभाए जाते हैं।
दूर रहकर भी, दिल से प्रेम जताये जाते हैं।।
दर्द मिले तो सहन कर, मुस्कुराना होगा।
देश सेवा में हैं सब, अब यह दिखाना होगा।।
राहें संघर्ष में तुम, कभी मायूस ना होना।
जीतेगा भारत है निश्चित, हारेगा कोरोना।।

रचनाकार
अरुण कुमार यादव,
उच्च प्राथमिक विद्यालय बरसठी,,
विकास क्षेत्र-बरसठी,
जनपद-जौनपुर।
Mob--9598444853

Comments

Total Pageviews