कोरोना ताला बन्दी

कोई रोड पर ना निकले, कोरोना ने लगाई रोक है।
ये आया कहाँ से जालिम, छा रहा जैसे शोक है।।

जितना छोटा उतना भयंकर दुनिया में छाया जमकर।
अब तो लगता कुछ ऐसा, घर में रहना होगा थम-कर।।
जिंदगी की रक्षा में मत करना कोई जोक है।
कोई रोड पर ना निकले, कोरोना ने लगाई रोक है।
ये आया कहाँ से जालिम, छा रहा जैसे शोक है।।

21 दिन नहीं 21 साल की है बात यारों।
जिंदगी, बचेगी या पिछड़ जाएगी प्यारों।।
इसलिए लक्ष्मण रेखा पार करने का टोक है।
कोई रोड पर ना निकले, कोरोना ने लगाई रोक है।
ये आया कहाँ से जालिम, छा रहा जैसे शोक है।।

घबराना नहीं, हिम्मत से तुम लेना काम।
सुबह-शाम ईश्वर/अल्लाह का तुम लेना नाम।।
नव किरण होगी उदित, ये सिर्फ झुकी पृथ्वी की झोक है।
कोई रोड पर ना निकले, कोरोना ने लगाई रोक है।
ये आया कहाँ से जालिम, छा रहा जैसे शोक है।।

बिता दिन 21 हम बाहर आएँगे,
संकट की बला से पार हो जाएगा।
सुन कोरोना, तेरा भी जब तक चालीसा हो जाएगा।।
दुर्गे माँ देंगी साथ तेरा, बस जब तक लगा तू धोक है।
कोई रोड पर ना निकले, कोरोना ने लगाई रोक है।
ये आया कहाँ से जालिम, छा रहा जैसे शोक है।।
जय माँ दुर्गे - जय माँ दुर्गे - जय माँ दुर्गे!

रचयिता
नरेन्द्र सैंगर,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बरकातपुर,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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