कर्मफल

निर्लज्ज, निशाचर, खलु, कामी
 ने निर्भया पर अत्याचार किया। 
सहमी, चीखी, चीत्कार भरी
मरते दम तक संघर्ष किया।।

दिल  को दहलाती घटना ने
नैनों को  बादल बना दिया।
मानवता की धरती पर
आँचल को सागर बना दिया।।

बाला के मात-तात ने जब
न्यायालय में फरियाद किया।
अपराधी ने सात साल तक
बचने का षड्यन्त्र किया।।

जब दोनों ने न्यायधीश को
अपना-अपना साक्ष्य दिया।
कर समीक्षा न्यायमूर्ति ने
फाँसी का आदेश दिया।।

निज कर्मों का ही फल मिलता
नैतिक मूल्यों को भूल गए।
फाँसी का फंदा गले डाल
चारों अपराधी झूल गए।।

कहते कवि "सुनील "सुनो
बच्चों को दीजिए सुसंस्कार,
निर्भया सा कोई काण्ड न हो,
न कोई फाँसी का शिकार।।

व्यभिचारी, दुष्ट, दानवों का
निर्भय हो करते तिरस्कार।
न्यायी चरित्र, सत्कर्म, संयमी
 को है मेरा नमस्कार।।

रचयिता
सुनील कुमार वर्मा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय चपरतल्ला,
शिक्षा क्षेत्र-मुजेहना,
जनपद-गोण्डा।

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