नन्हा सा एक बीज

नन्हा सा एक बीज था बोया
  मैंने  एक दिन धरती में।।
सोचा  कि कुछ काम करूँ
मन ही मन था उकताया।।
 बीज दबा कर गहरा मैंने
 थोड़ा पानी छिड़काया,
  उठा के गमला फिर मैंने
  धूप में उसको रखवाया।।
हर दिन उसको देखा मैंने
एक एक दिन मैं हर्षाया
सपनों में उगते देखा उसको
नन्हा सा पौधा मन भाया।।
  रोज़ डालता पानी उसमें
  रखता धूप का भी ख्याल
  फूटेगा नन्हा सा एक पौधा
   सोच सोच मैं मुस्काया।।
फिर एक दिन की बात बताऊँ
देखा मैंने उस गमले में
 नन्हा सा एक हरा-हरा सा
प्यारा एक किल्ला दिखलाया।।
   अपनी माँ की गोद से उठकर
    उस नन्हें ने थी आँखें खोली
    देख रहा था इस जग को वो
    मन ही मन था घबराया।।
मैने उसको सहलाया और
और उसको ये भी बतलाया
 उसकी जरूरत है सबको
ये सुन वो कुछ भरमाया।।
   ये जग इतना बुरा नहीं है
   क्यों वो इतना सकुचाया,
    पौधों की है सबको जरूरत
    अब वो मन से मुस्काया।।
धीरे-धीरे बड़ा हुआ वो
पौधे से फिर पेड़ बना,
शाखें, फूल, फलों से फिर
वो झूम झूम के लहराया।।
   
रचयिता
डॉक्टर नीतू शुक्ला,
प्रधान शिक्षक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल बेथर 1,
विकास खण्ड-सिकन्दर कर्ण,
जनपद-उन्नाव।

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