हवा और सूरज
मैं ताकतवर तू कमजोर,
सूरज-हवा मचाएँ शोर।
बड़ी अकड़ से बोला सूरज,
मुझमें है ताकत पुरजोर।
गर्मी में सब दूर भागते,
सर्दी में चाहत सब ओर।
जब मैं खेलूँ छुपम छुपाई,
छाए अँधेरा तब घनघोर।
मेरे तेज से सब ही काँपे,
मुझमें अजब-गजब है जोर।
हवा भी लड़ने को तैयार,
आज फैसला आर या पार।
गर्मी में देती मैं ठंडक,
ताजी-ताजी सुगंध बयार।
प्राणवायु मैं हर प्राणी की,
मुझसे ही जीवन आधार।
तपिश तेरी ठंडी कर देती,
क्यों करता तू मुझसे रार।
गुस्से से बोला अब सूरज,
हवा मान ले अपनी हार।
बोला मौसम तब दोनों से,
आपस में मत लड़ो-लड़ाओ।
गुस्सा थूको सूरज चाचा,
हवा बहिन तुम भी मुस्काओ।
दोनों ही तुम ताकतवर,
जीव-जन्तु के प्राण बचाओ।
तुम दोनों से यह संसार,
तुम ही जग के पालन हार।
जीवन का अस्तित्व न संभव,
अगर न हो जो धूप-बयार।
आपस में लड़ना बेकार,
बाँटो मीठा-मीठा प्यार।
रचयिता
राजबाला धैर्य,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय बिरिया नारायणपुर,
विकास खण्ड-क्यारा,
जनपद-बरेली।
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