गोपेश्वर गोपाल
वृजनंदन सुत देवकी, हे!जशुमति के लाल।
रोंम - रोंम रम जाइये, गोपेश्वर गोपाल।।
~~~~ मयंतगंद सवैया~~~~~~
मोहन माधव हे मधुसूदन,
नाथ! अनाथ सनाथ बनाओ।
सागर में लहरैं -लहरें जस,
प्रेम ध्वजा उर में फहराओ।।
रूप अनूप अगोचर जो,
मम नैन लखें अभिलाष जगाओ।
श्याम सुनो! "निरपेक्ष" कहै,
भव-सागर तारक पार कराओ।।
(2)
नंद यशोमति लाल छटा छवि,
छाजत पूनम सी उजियारी।
दीन दयालु दया-निधि माधव,
दीन दुखी जन के हितकारी।।
भक्ति समर्पण से उर की-
छटतीं घन घोर घटा अँधियारी।
शान्ति वहाँ "निरपेक्ष" जहाँ-
रमते निशि वासर कुञ्जबिहारी।।
रचयिता
हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।
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