आ जाओ मोहन
घनघोर अंधेरा है छाया,
आ जाओ मोहन प्यारे तुम।
मन के अंदर मैल बहुत है,
उसको तो धो जाओ तुम।।
मृगतृष्णा में लगा है मन,
समझ रहा हो रही तरक्की।
सच्चाई को देख सकें सब,
ऐसी अलख जगाओ तुम।।
विषम परिस्थिति बनी हुई है,
जगत के कोने-कोने में।
उतर गगन से धरा पे आओ,
वंशी की तान सुनाओ तुम।।
लाज को छूने द्रोपदी की,
करे न कोई साहस।
द्युत-क्रीड़ा में होश न खोये,
ऐसा बिगुल बजाओ तुम।।
रचयिता
सरिता तिवारी,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला,
विकास खण्ड-मसौधा,
जनपद-अयोध्या।
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