तिरंगे की गंगा
तिरंगे की गंगा में मगन मन गंगा,
दिखते हैं तीन पर है अतिरंगा।
हिन्द के भाल का प्यारा ये सेहरा है,
घर- घर लहरा रहा मेरा तिरंगा है।।
तिरंगे की गंगा में झूम-झूम गावो जी,
शहीदों की याद में मस्तक झुकावो जी।
तिरंगे की गंगा में डुबकी लगाओ जी,
शहीदों सा तेज-बल अपने में पाओ जी।।
आजाद की जवानी से बना ये तिरंगा है,
बोस की तरंगों से तरंगित तिरंगा है।
जवानियों की कुर्बानी से बना ये तिरंगा है,
वीराङ्गनाओं की शह से बना ये तिरंगा है।।
अशफाक की खाक से बना ये तिरंगा है,
रोशन की रोशनी से बना ये तिरंगा है।
बिस्मिल की जय से सजा ये तिरंगा है
सरफरोशी की तमन्नाओं का ये तिरंगा है।।
तिरंगे की लहर से मन हो गया चंगा,
लहर-लहर लहराए कैसे मेरा तिरंगा।
तिरंगे को देख विरोधी अब काँपे जी,
तिरंगे की गूँज अब संसार में व्यापे जी।।
हिन्द देश के निवासी झूम झूम गा रहे,
आजादी का महोत्सव सब मिलके मना रहे।
आजादी के अमृत का पान अब कर लो जी,
तिरंगे की गंगा में स्नान अब कर लो जी।।
स्वतंत्रता महोत्सव का अजब नज़ारा,
यूँ ही बढ़ता रहे हम सब का भाईचारा।।
रचयिता
प्रतिभा भारद्वाज,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यामिक विद्यालय वीरपुर छबीलगढ़ी,
विकास खण्ड-जवां,
जनपद-अलीगढ़।
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