मुहर्रम

इस्लाम धर्म का 'महीना’ पाकीजा,
इस्लामी वर्ष का आग़ाज़ है।
चार 'पाक’ महीनों में शामिल,
'मुहर्रम ‘भी एक 'पाक’ माह है।

'विषाद’ भरा यह माह-ए-मुहर्रम,
दुखदायी घटना ऐतिहासिक,
इमाम हुसैन, नवासे मुहम्मद के,
इनकी ही शहादत का बखान है।

यज़ीद की ग़द्दारी की कहानी,
इमाम व साथियों की क़ुर्बानी,
इमाम का क़ाफ़िला, 'बहत्तर’ जवानों का,
अस्सी हज़ार की 'फ़ौज ‘से घमासान है।

दस दिन युद्ध, दस दिन का मातम,
'करबला’ के जवानों का बलिदान है,
रेत के टीलो पे, साथियों को दफ़नाकर,
डटे रहना, बहादुरी का पैगाम है।

अक्ष की नमाज़ में, सजदे के आलम में,
इमाम का धोखे से 'क़त्ले  आम’ है,
पाक़ महीना है, रोज़े के मौसम में,
याद करते शहीदों का बलिदान हैं।

आस्था का समागम, शहादत की बातें,
याद करता हर एक ‘मुसलमान’ है,
अन्याय ना सहकर, हिम्मत से लड़कर,
'इस्लाम' को दिया नया जीवन दान है ।

रचयिता
माया गुरूरानी,
सहायक अध्यापक,
राजकीय आदर्श प्राथमिक विद्यालय धौलाखेड़ा,
विकास खण्ड-हल्द्वानी,
जनपद-नैनीताल,
उत्तराखण्ड।

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